लव जिहाद के अलावा और कुछ भी नहीं दिखाया गया फरहान अख्तर के “तूफान” में

अफसोस की बात है कि बड़ी उम्मीदों के बावजूद भाग मिल्खा भाग के सामने तूफान किसी भी कैटेगरी में नहीं टिकती. राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित तूफान फरहान अख्तर की बहुप्रतीक्षित फिल्म है जिससे कोरोनावायरस के कारण मजबूरन अमेजॉन  (Amazon Prime) प्राइम पर रिलीज करना पड़ा. यह फिल्म एक सड़क छाप गुंडे अजीज अली उर्फ अज्जू भाई के बारे में है जो एक डॉक्टर के प्रेम में पड़ता है. कैसे वो एक बॉक्सिंग कोच नाना प्रभु से दीक्षा लेकर बॉक्सिंग जगत में अपना नाम कमाने के लिए जी जान लगाता है, तूफान इसी बारे में है.

अगर कुछ शब्दों में कहा जाए तो जिस फिल्म को देखकर अनुराग कश्यप की प्रोपेगेंडा से परिपूर्ण मुक्केबाज भी आपको महत्व इन मूवी लगी तो फिर आप खुद ही समझ जाइए कि तूफान मूवी कैसी है. इस फिल्म की कहानी इसके नायक के स्ट्रगल, और इसकी प्रेम कहानी के प्लॉट पॉइंट्स को आपने लगभग हर दूसरी तीसरी हिन्दी फिल्म में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में देखा ही होगा. ‘तूफान’ हांडी की वो बिरयानी है, जो चार हफ्तों तक फ्रिज में पड़ी थी, लेकिन उसे माइक्रोवेव करके प्याज का तड़का लगाके आपको फिर से परोस दी गई है, मानो इससे क्रांतिकारी कुछ है ही नहीं.

इस फिल्म का भी प्रोपेगेंडा कुछ नया नहीं है लड़का जहां मुस्लिम (Muslim) है तो वही लड़की एक हिंदू (Hindu) डॉक्टर लड़का जहां अनाथ है तो वही लड़की का अनाथ बच्चों की देखभाल करने वाले पर दिल आ जाता है. वही कोच यानी परेश रावल जोकि अभिनेत्री के पिता का किरदार निभा रहे हैं ने भी अपने किरदार को निभाया है.

अगर कहानी की बात की जाए तो तूफ़ान फिल्म में Aziz Ali के कोच हनुमान भक्त न होते और डॉ. अनन्या (मृणाल ठाकुर) फिल्म में डॉ. आसिफा होतीं तो भी फिल्म पर कोई फर्क नहीं पड़ता. इससे एक चीज बेहतर होती फिल्म अनावश्यक लंबी न होती और कहानी बिखरने से भी बच जाती. फिल्म को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे फिल्म निर्माता का उद्देश्य ही लव जिहाद को परोसने का था, परंतु वो गच्चा खा गए.

फरहान अख्तर के बारे में कहा जाए तो एक फिल्म में सिर्फ शरीर बदलना ही सब कुछ नहीं होता. एक किरदार को अपने भीतर कितना आत्मसात किया जाए यह भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है. गौरतलब है कि इरफान खान ने कोई भी ढोल नगाड़े नहीं बजाए लेकिन आज भी लोग उन्हें पान सिंह तोमर ने उनके एथलीट के तौर पर परिवर्तन की मिसाल देते हैं, जिसके कारण उनके टखने भी टूट गए थे. इस पूरी फुल में एक ही अच्छा काम रहा जो कि परेश रावल का था

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