क्या कांग्रेस है 70,000 करोड़ के नुकसान की जिम्मेदार? क्यों नेहरू ने छीना JRD TATA से एयर इंडिया

Why Nehru snatched Air India from JRD Tata: भारतीय मीडिया में आज यह खबर तैर रही है कि टाटा समूह में एयर इंडिया (Air India) की बोली जीतकर इससे खरीद लिया है हालांकि दूसरी और वित्त भारतीय वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) ने इन सभी खबरों को सिरे से नकार दिया है. भारत सरकार ने इसके साथ यह भी कहा कि अगर ऐसा कोई निर्णय होगा तो सूचित किया जाएगा लेकिन चलिए आज हम एयर इंडिया की इतिहास के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, कैसे जेआरडी टाटा (JRD Tata) के ना चाहने के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया था.

बात नवंबर 1952 की है जब देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक जेआरडी टाटा जवाहरलाल नेहरू से मिलने पहुंचे. तब देश नया-नया स्वतंत्र ही हुआ था. इसके बाद नेहरू ने टाटा को पत्र लिखकर एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस को लेकर बातें कही थी.

तलब है कि इस पत्र में उन्होंने लिखा था कि लंच के दौरान उन्हें परेशान देख कर अपनी बात नहीं रख पाए, लेकिन वो उस दौरान टाटा ने उन्हें बताया था कि कैसे केंद्र सरकार ने उनकी विमान कंपनियों के साथ गलत व्यवहार किया है. टाटा को लगता था कि सरकार ने जानबूझ कर एक नीति तैयार की, ताकि वो ‘एयर इंडिया’ को सस्ते में खरीद कर उन्हें नुकसान पहुँचा सके और इसके लिए कई महीनों से काम चल रहा था.

वहीं दूसरी ओर नेहरू का कहना था कि JRD टाटा के मन में उनके सरकार के प्रति भ्रम है, जबकि वो भारत में विमान सेवाओं को आगे बढ़ाने व इन्हें विकसित करने पर जोर दे रहे हैं. नेहरू ने सफाई दी थी कि इन कंपनियों का भाव कम होने के बाद इन्हें खरीदना किसी साजिश का हिस्सा नहीं था. उन्होंने इसे स्थिति के अनुसार कार्यवाही करार दिया था. लेकिन, JRD टाटा मानते थे कि विमान सेवा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण एक अच्छा फैसला नहीं है और इससे एक सटीक एयर ट्रांसपोर्ट सिस्टम का निर्माण नहीं होगा.

अगर इतिहास के बात करें तो देश के पहले कमर्शियल फ्लाइट 1932 में एक एयर मेल को लेकर कराची के दृघ रोड एरोड्रम (अब जिन्ना इंटरनेशनल एयरपोर्ट) से बॉम्बे के जुहू एरोड्रम (मुंबई-जुहू एयरपोर्ट) तक उड़ी थी. JRD टाटा ने खुद ये कारनामा किया था. विश्व युद्ध II के ख़त्म होने के बाद ये ‘एयर इंडिया’ बन गई. 2006 के बाद इसका विलय ‘इंडिया एयरलाइंस’ में कर दिया गया, जिसके बाद इसका घाटा बढ़ता ही चला गया.

आज एयर इंडिया 70,000 करोड से भी अधिक के घाटे में है और जमशेदजी टाटा की बातें आज सभी के सामने सच साबित हो रही हैं. नेहरू की अदूरदर्शी नीति का खामियाजा जहां सभी देशवासी को आज भुगतना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर प्राइवेट एयरलाइन से प्रतिद्वंदिता और मानव वह वित्तीय संसाधन के को प्रबंधन से जूझ रहा है. अगर बात करें तो एयर इंडिया फिर से टाटा में लौटता है तो इसकी घर वापसी होगी और यह घूम फिर कर यह अपने संस्थापक समूह के ही हाथ में लौट आएगा.

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