महाराष्ट्र में पिछले हफ्ते का प्रमुख शरद पवार (Sarad Pawar) और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) के बीच हुई मुलाकात से सियासी मंच गरमा गया है. इस मुलाकात के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. राजनीति की जानकारी रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों की यह मुलाकात भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष के विचार को फिर से बल देने की हो सकती है. हालांकि बीते 1 महीने में हुए घटनाक्रम से यह भी अटकलें लग रही हैं कि शरद पवार खुद को 2022 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर देख रहे हैं. इतना ही नहीं अलग-अलग पार्टियों में अपनी पैठ और अच्छे व्यवहार के चलते हैं शरद पवार भाजपा के लिए बड़ी चुनौती भी पेश कर सकते हैं.
तीसरे मोर्चे की अटकलों पर लगाम, फिर पीके-पवार की मीटिंग के क्या है मायने?
ध्यान देने वाली बात यह है कि जब पिछले महीने पीके और शरद पवार की बैठक हुई थी तभी उम्मीद जताई जा रही थी कि भाजपा विरोधी नेताओं और सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं को एक साथ लाया जा सकेगा. हालांकि कुछ दिनों पहले ही शरद पवार के दिल्ली स्थित आवास पर बुलाई गई राष्ट्र मंच की बैठक से कई विपक्षी पार्टियां गायब रहे. इन विपक्षी पार्टियों में सबसे बड़ा नाम कांग्रेस (Congress) का रहा. जिसके बाद खुद शरद पवार ने भी कार्यक्रम से दूरी बना ली थी.
प्रशांत किशोर ने कहा था कि सरकार के खिलाफ तीसरा मोर्चा कोई विकल्प नहीं है इसी दौरान पीके ने कहा था कि उन्हें इस बात का यकीन नहीं है कि कोई तीसरा या चौथा मोर्चा भी फिर बीजेपी को मजबूती से चुनौती दे पाएगा. उन्होंने इस मॉडल को पुराना और आजमाया हुआ बता दिया. साथ ही उन्होंने कहा कि राज्य दल राज्य क्या काम करेगा और क्या नहीं पर हम विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि तीसरा मोर्चा एक विकल्प नहीं है.
पीके से मुलाकात में पवार ने जाहिर की राष्ट्रपति बनने की इच्छा
केंद्र को चुनौती देने को लेकर प्रशांत किशोर की बात से ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषकों की तीसरे मोर्चे की अटकलों पर विराम लगा दिया. ऐसी स्थिति में शरद पवार से सीखे के मिलने के नए सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. अब अटकले लगाई जा रही हैं कि दोनों के बीच बैठक में राष्ट्रपति पद के लिए एक मजबूत उम्मीदवार पेश करने पर चर्चा हुई. खास बात यह है कि शरद पवार इस पद के लिए खुद एक उपयुक्त नेता माने जा रहे हैं.
80 वर्षीय शरद पवार एक अनुभवी नेता हैं जिन्होंने बीते कुछ सालों में अपनी बेटी सुप्रिया सुले के साथ अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों में भी शानदार संबंध बनाए हैं. ऐसे में शरद पवार का राष्ट्रपति पद के लिए खड़े होने का फैसला विपक्ष को एकजुट करने वाला भी हो सकता है. इससे राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के लिए भी मुश्किलें पैदा होने का अनुमान है जिसे हालिया विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है.