एक तरफ किसान आंदोलन (Kisan Protest) हैं और दूसरी तरफ पश्चमी बंगाल के चुनाव मोदी सरकार के लिए यह साल किसी मुसीबत से कम नहीं हैं. किसान आंदोलन अपनी चर्म सीमा पर लगभग पहुँच चूका हैं, दिल्ली में किसान संसद भवन और लाल किले के अंदर जाने की बातें कर रहें हैं.
अगर आप अब भी नहीं समझे तो आपको हालहीं में अमेरिका (America) में हुए दंगों का तो पता होगा, जी हाँ यह किसान आंदोलन उसी प्रकार भारत की संसद भवन और लाल किले के अंदर जाने की योजना बना रहें हैं जैसे अमेरिका में ट्रंप स्पोटर्स अमेरिका के वाइट हाउस (White House) में घुसे थे.
यह किसान आंदोलन आगे क्या रुख लेगा कहना मुश्किल हैं लेकिन अगर हालात बिगड़ते हैं तो किसान सेंटीमेंट्स के साथ बीजेपी की स्थिति पश्चमी बंगाल में कमजोर पड़ जाएगी. यही कारण हैं की, ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) इस स्थिति का फायदा उठाते हुए Left और Indian National Congress से मदद मांग कर अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहती हैं.
इससे पहले मुस्लिम वोट काटने के लिए असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) पश्चमी बंगाल में चुनाव लड़ने का प्लान बना चुके हैं और ममता बनर्जी के इशारे पर पश्चमी बंगाल की मस्जिदों से ऐलान करवा दिया गया हैं की ओवैसी को वोट नहीं देना हैं. ऐसे में अगर पश्चमी बंगाल में मुस्लिम मस्जिदों की बात मानते हैं तो सीधा वोट उनका Trinamool Congress को जाएगा अगर Left और Congress भी साथ आ गयी तो BJP के लिए पश्चमी बंगाल का सपना एक बार फिर से 5 साल दूर हो जाएगा.
यही कारण हैं की टीएमसी के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगता रॉय (Saugata Roy) ने ब्यान देते हुए कहा है की, “अगर वाम मोर्चा और कांग्रेस वास्तव में भाजपा के विरोधी हैं, तो उन्हें भगवा पार्टी की सांप्रदायिक और विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी का साथ देना चाहिए. भाजपा के खिलाफ वह धर्मनिरपेक्ष राजनीति का असली चेहरा हैं.”
पश्चिम बंगाल में 294 विधानसभा सीटें हैं और यहाँ अप्रैल-मई 2021 में कभी भी चुनाव का ऐलान हो सकता हैं. बीजेपी ने लोकसभा चुनावों के दौरान 18 सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया था और इसी लिए बीजेपी इस बार के विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के दावे कर रही हैं, लेकिन किसान आंदोलन में कुछ गड़बड़ हुई तो किसान सेंटीमेंट्स के चलते यह जीत हार में बदलते हुए देर नहीं लगेगी.