केंद्र सरकार को अब देश भर से किसान बिल के समर्थन में पत्र मिलने लगे हैं. यह केंद्र सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि हैं, दरअसल 5 से 10 हजार जमींदारों और विचौलियों को पुरे देश के किसानों का रहनुमा बनाकर विपक्ष सिंघु बॉर्डर पर उन्हें लेकर बैठा हैं. जबकि देश भर में 15 करोड़ से अधिक लोग किसानी करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते हैं.
विपक्ष की अगर बात सही हैं की पुरे देश के किसान इस बिल के विरोध में है तो दिल्ली की कुल जनसँख्या 2 करोड़ है ऐसे में दिल्ली के बॉर्डर पर दिल्ली की कुल जनसँख्या से भी 5 से 8 गुना लोग बैठे होते. लेकिन सरकार इस बात को साबित नहीं कर पा रही थी की जो किसान अपने घरों या खेतों में काम कर रहें हैं वह बिल के समर्थन में हैं.
अब सरकार को 20 राज्यों के 3 लाख 13 हजार 363 किसानों ने नए कृषि कानूनों के समर्थन में किसानों ने पत्र लिखे हैं. उत्तर प्रदेश, हिमाचल, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड के भी कुछ किसान संगठनों ने इस बिल के समर्थन में कहा है की अगर सरकार ने यह बिल रद्द किये तो देश भर में आंदोलन शुरू कर देंगे.
अब केंद्रीय मंत्री तोमर ने मीडिया से बातचीत करते हुए इसकी जानकारी देते हुए बयान दिया हैं की, “विगत छह वर्षो में कृषि सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं. पीएम किसान सम्मान निधि, आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि एवं इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों के लिए डेढ़ लाख करोड़ रुपये का अवसंरचना कोष, देश में नये 10,000 किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाने की कवायद, किसानों को मांग के अनुरूप उर्वरक की आपूर्ति, फसलों के लागत मूल्य पर कम से कम 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रदान करने जैसे कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं.”
तोमर ने आगे कहा की, “नए कृषि सुधार कानून इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लाए गए हैं. इन सुधार कानूनों को लाने से पहले किसान यूनियनों, कृषि विशेषज्ञों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, कृषि मंत्रियों से विस्तार से विमर्श किया गया था.” अब देखना यह होगा की सरकार इस बिल के समर्थन में खड़े किसान और इस बिल के विरोध में धरने पर बैठे किसानों के बीच वार्तालाप के जरिए किस तरह हल निकालती हैं.