ममता बनर्जी ने मुस्लिम वोटों के सहारे पश्चमी बंगाल में हिन्दुवों का बुरा हाल करवा दिया. मुस्लिम तुष्टिकरण भी ऐसा की देश की सुरक्षा ही खतरे में आ पड़े. लेकिन जैसे ही पता चला मुस्लिम वोट के पीछे भागते हुए ओवेसी ने पश्चमी बंगाल में मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला कर लिया हैं. ममता बनर्जी को चुनावी नतीजों का एहसास हो गया हैं.
दरअसल ओवेसी के प्रत्याशी के सामने मुस्लिम बहुल इलाके में किसी सेक्युलर पार्टी का प्रत्याशी टिक नहीं पाता. हिन्दुवों का बंगाल में ऐसा हाल हुआ हैं की अब ममता बनर्जी की पार्टी हिन्दुवों से किस आधार पर वोट की मांग करे. वामपंथ पहले ही पश्चमी बंगाल में अपने घुटने टेक चूका हैं और कांग्रेस भी अपनी हार पहले ही तय मान रही हैं.
ऐसे में ममता बनर्जी के पास एक ही रास्ता हैं की वह या तो ओवेसी की पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने का फैसला करे. अन्यथा अकेले चुनाव लड़के बिहार की RJD जैसा अपना हाल करले. पश्चमी बंगाल में तृणमूल कांग्रेस चुनाव से ठीक पहले टूट का बिखर गयी हैं.
राजनेता तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन पकड़ रहें हैं. ऐसे में अब ममता बनर्जी ने बंगाल में चुनावों के लिए अरविन्द केजरीवाल और पवार से बातचीत करके उनकी रैलियां करवाने की बात की हैं. बताया जा रहा हैं लोकसभा 2019 के महागठबंधन के तर्ज़ पर विपक्षी पार्टियों को एकजुट करके पश्चमी बंगाल में विपक्षी नेताओं अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, स्टालिन, कुमारास्वामी की रैलियां करवाने पर जोर दे रही हैं.
एक वक़्त था, जब ममता बनर्जी खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना करती थी. 2019 का वह समय जब महा गठबंधन में शामिल प्रत्येक नेता खुद को प्रधानमंत्री बनने के काबिल समझता था. आज वक़्त और हालात यह हैं की, उसे अपने राज्य में ही सरकार बचाने के लिए दूसरी पार्टी के नेताओं की रैलियां करवानी पड़ रही हैं. तो क्या ममता बनर्जी को एहसास हो चूका हैं वह मोदी और शाह के सामने टिक नहीं पाएंगी? ममता बनर्जी का यह कदम क्या राज्य में बीजेपी की मजबूत स्थिति की ओर इशारा कर रहा हैं? ऐसे ही कई सवालों के जवाब हमें चुनावी नतीजों के साथ मिलेंगे.