अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा एक दिलचस्प सुनवाई देखने को मिली है. मंदिर में प्रतिष्ठित देवता ही मंदिर से जुड़ी भूमि के मालिक हैं और पुजारी केवल पूजा करने और देवता की संपत्तियों के रखरखाव के लिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मंदिर की संपत्तियों से संबंधित राजस्व रिकॉर्ड से पुजारी के नाम को हटाने के लिए जारी किए गए परिपत्र को बरकरार रखते हुए दिया है.
गौरतलब है कि सरकार द्वारा जारी मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) भू-राजस्व संहिता- 1959 के तहत इन परिपत्रों को पहले मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था. अपील में राज्य ने तर्क दिया कि मंदिर की संपत्तियों को पुजारियों द्वारा अ वैध बिक्री से बचाने के लिए इस तरह के कार्यकारी निर्देश जारी किए गए थे. वही दूसरी ओर, पुजारियों ने तर्क दिया कि उन्हें भूमिस्वामी (स्वामित्व) अधिकार प्रदान किए गए हैं और इसे कार्यकारी निर्देशों के द्वारा वापस नहीं लिया जा सकता है.
बता दें कि न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना की पीठ ने अयोध्या में राममंदिर पर फैसले सहित पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा, ‘कानून इस भेद पर स्पष्ट है कि पुजारी मौरूसी काश्तकार नहीं है. यानी, वह खेती में किराएदार या सरकारी पट्टेदार या माफी भूमि का सामान्य किराएदार नहीं है. बल्कि प्रबंधन के उद्देश्य से औकाफ विभाग की ओर से नियुक्त किया गया है. पुजारी केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए एक अनुदानकर्ता है. यदि पुजारी उसे सौंपे गए कार्य यानी पूजा करने और भूमि का प्रबंधन आदि को करने में विफल रहता है तो इस तरह के अनुदानकर्ता को बदला जा सकता है.
बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इस तरह की कई सुनवाई कर चुका है. अक्सर देखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट पिछले कुछ सालों से कठोर कार्रवाई कर रहे मैं बिल्कुल भी पीछे नहीं हट रहा है. इसी का नतीजा 370,377 और तीन तलाक जैसे कानून है.