देखिए फिल्मी डायरेक्टरो के काले कारनामों की सच्चाई इन 10 तस्वीरों में, 1951 में डायरेक्टर इस तरह ऑडिशन

ऐसी तस्वीरें जो सभी इंटरनेट पर छाई हुई हैं,वो फोटो जर्नलिस्ट जेम्स बर्क की थी। और कारदार प्रोडक्शंस के वयोवृद्ध बॉलीवुड फिल्म निर्देशक अब्दुल राशिद कारदार एक भारत और एक विदेशी युवती का स्क्रीन टेस्ट कर रहे हैं।

अब्दुल राशिद कारदार

कारदार ने शाहजहाँ साल 1946, दिल्लगी को और दुलारी को साल 1949, दिल दिया दर्द लिया जैसी प्रसिद्ध फिल्मों के निर्देशक थे।ये तस्वीरें जेम्स बर्क ने लाइफ मैगजीन के लिए ली थी। कहा जाता है कि शायद ये फोटोज 1951 में ली गई थीं।

आपको बता दिया जाए कि अब्दुल राशिद कारदार ने एक कला विद्वान और एक सुलेखक के रूप में विदेशी फिल्म निर्माण के लिए पोस्टर बनाया था जो उस समय बहुत प्रचलित थी और साल 1920 के दशक के शुरुआत में समाचार पत्रों के लिए लेखन शुरू किया जो दर्शकों को बेहद पसंद आता था। उनका काम अक्सर उन्हें भारत भर के फिल्म निर्माताओं से मिलाती हैं।

साल 1928 में, भारत में केवल नौ सिनेमा घर थे। तब पहली मूक फिल्म, “द डॉटर्स ऑफ टुडे” रिलीज हुई थी। उस समय लाहौर के सिनेमाघरों में दिखाई जाने वाली ज्यादातर फिल्में बॉम्बे या कलकत्ता में बनीं थी, और इसके अलावा हॉलीवुड या लंदन में बनती थी।

परियोजना के लिए एक कैमरा लाया गया था। कारदार को परियोजना के मदद के लिए कहा और इसी प्रकार से उन्हें फ़िल्म में पहली भूमिका भी मिली।

फ़िल्म का निर्माण वाला जगह

ऐसा कहा जाता है कि फ़िल्म पहले खुले स्टूडियो में ब्रैडलॉ हॉल के पास हुआ था। पर उसे वित्तीय कारणों से बंद करना पड़ा।फिल्म की शूटिंग के बाद, कारदार को बहुत वक्त तक किसी अन्य भूमिका नहीं मिली।भाटी गेट इलाके से आने वाले, जहां लेखकों और कवियों को ढूंढना असामान्य नहीं था,कारदार ने फिल्म उद्योग के लिए अपना शुरूआत वही से करने की सोची।

1928 में उन्हे पहले उद्दम के बाद काम नहीं मिला। फ़िर उन्होंने एक स्थान खोजा और वहां अपने कार्यालय की स्थापना रवि रोड पर किया।उन्होंने एक स्टूडियो ओर प्रोडक्शंस कम्पनी भी स्थापित किया,जिसके कारण उन्हे अपनी पूरी समान बेचनी पड़ गई।

कारदार द्वारा फ़िल्म का निर्माण

कारदार ने 1930 मे बैनर तले पहली फिल्म का निर्माण किया।फिल्म को थिएटरों में थोड़ी सफलता प्राप्त हुई। लेकिन लाहौर को एक कार्यशील फिल्म उद्योग के रूप में प्रमुखता से स्थापित किया।कारदार ने किसी अन्य फिल्म में काम ना करने और निर्देशन पर फोकस करने की ठान ली।

लाहौर के ब्रैंडरेथ रोड 

इस रोड के निवासी रूप लाल शोरी शहर में एक नई फिल्म उद्योग की बात सुनकर अपने घर लौट गए।फ़िर उन्होंने क़िस्मत के हार फ़ेर उर्फ़ लाइफ़ आफ्टर डेथ का शुरूआत की, जो उस समय के अन्य फ़िल्म उद्योगों के अनुरूप के कारण नए उद्योग की प्रतिष्ठा को अच्छे से स्थापित करेगा।

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