जैसे-जैसे किसान आंदोलन आगे बढ़ रहा हैं किसान नेताओं की आपसी फुट नज़र आने लगी हैं. किसको कितने पैसे मिले, ज्यादा क्यों मिले, मुझे क्यों नहीं मिले शायद यही कारण हैं की (जनवरी 17, 2021) को संयुक्त किसान मोर्चा (United Kisan Morcha) की बैठक में यह किसान नेता आपस में ही झगड़ पड़े.
यह पूरा झगड़ा उस समय शुरू हुआ जब संयुक्त बैठक में भारतीय किसान यूनियन (हरियाणा) के अध्यक्ष गुरनाम चढूनी (Gurnam Chaduni) पर कांग्रेस से आंदोलन के नाम पर 10 करोड़ रूपए लेने की बात सामने आई. दूसरे किसान नेताओं ने कहा की गुरनाम चढूनी किसान आंदोलन (Farmer Protest) को राजनीती का अड्डा बनाना चाहते हैं, जिससे आंदोलन कमजोर हो जाएगा.
इस आंदोलन का सारा श्रेय अंत में कांग्रेस नेता उठा ले जायेंगे और गुरनाम चढूनी को मिलेगा कांग्रेस की तरफ से पार्टी का टिकट. वहीं गुरनाम चढूनी ने सारे आरोपों को खारिज कर दिया हैं, जबकि दूसरे किसान नेताओं का कहना है की गुरनाम चढूनी ने 10 करोड़ रूपए इस किसान आंदोलन के नाम पर कांग्रेस (Congress) से लिए हैं. जिससे वह हरियाणा (Haryana) में BJP और JJP की सरकार गिरा सके.
यह सारा मामला उस समय बाहर आया जब NIA ने किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं को सम्मन भेजे. जिसके बाद किसान आंदोलन के 54वें दिन सभी किसान संगठनों ने ऐलान किया की किसान आंदोलन से जुड़ा कोई भी व्यक्ति NIA के सम्मन का पालन नहीं करेगा और न ही NIA के समक्ष पेश होगा.
‘ऑल इंडिया किसान सभा’ (All India Kisan Sabha) के नेता और 8 बार के सांसद रहे हन्नान मुला (Hannan Mula) ने भी अपना पल्ला उस मांग से झाड़ लिया हैं जिसमें कुछ किसान यूनियन दुबारा समिति के गठन की मांग कर रहें हैं. गुरनाम चढूनी द्वारा कांग्रेस से 10 करोड़ रूपए लिए जाने की खबर के चलते अब बाकी किसान नेता उन्हें आंदोलन से बाहर करने की मांग कर रहें हैं.
राजनितिक विशेषज्ञों का कहना है की किसान आंदोलन के नाम पर किसान नेता अंत में पंजाब चुनावों के लिए अपनी राजनितिक पार्टी बनाने का ऐलान करने वाले हैं. इसीलिए वह इस आंदोलन को किसी भी अन्य राजनितिक दल से नहीं जोड़ना चाहते, ऐसे में अगर गुरनाम चढूनी इस आंदोलन में कांग्रेस नेताओं को एंट्री करवाने में कामयाब होते तो फिर किसान नेताओं द्वारा अलग राजनितिक पार्टी बनाने का महत्व ही नहीं रह जाता, क्योंकि आंदोलन फिर कांग्रेस बनाम बीजेपी हो जाता जो की अब किसान बनाम बीजेपी हैं.