सोशल मीडिया पर बोलने की आज़ादी को लेकर वैसे तो सोशल मीडिया कंपनियां बहुत समर्थन करती हैं. लेकिन उनका यह समर्थन एक तरफ़ा है, यानी अगर आप किसी मुस्लिम के खिलाफ कुछ लिखते है तो आपका कमेंट, पोस्ट या फिर वीडियो कुछ देर बाद उड़ा दिया जाता हैं या फिर आपका अकाउंट ही ब्लॉक कर दिया जाता हैं.
लेकिन अगर कोई व्यक्ति गैर मुसलमानों के प्रति इस तरह की कोई पोस्ट करता है तो रिपोर्ट करने के बावजूद वो सोशल मीडिया कंपनीज के नज़र में गलत नहीं होता. यही कारण हैं की किसानों को दंगों के लिए उकसाने वाले उर्दू शायर मुनव्वर राणा द्वारा किया गया रविवार (जनवरी 10, 2021) को एक पोस्ट अभी तक सोशल मीडिया कंपनी द्वारा हटाया नहीं बल्कि पुलिस के डर से उन्होंने यह ट्वीट खुद डिलीट किया.
आंदोलन कर रहे किसानों को भड़काने के लिए मुनव्वर राणा ने ट्वीट करते हुए लिखा की, “इस मुल्क के कुछ लोगों को रोटी तो मिलेगी, संसद को गिरा कर वहाँ कुछ खेत बना दो. अब ऐसे ही बदलेगा किसानों का मुकद्दर, सेठों के बनाए हुए गोदाम जला दो. मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूँ, गर्दन को उड़ाओ, मुझे या जिंदा जला दो.”
इससे पहले पेरिस में महज़ एक कार्टून दिखाने के लिए शिक्षक का गला रेतने वाले आतंकी के बचाव में भी ट्वीट करते हुए लिखा था की अगर मैं उसकी जगह होता तो मैं भी यही करता. अब कुछ लोग कह सकते है की संसद गिराने और गोदामों को आग लगाने का मतलब यह नहीं हो सकता की वह लोगों को सच में संसद गिराने और गोदामों को आग लगाने के लिए कह रहें हैं.
परन्तु सवाल यह है की जब कोई इंसान बिना अपनी समझ के, बिना बिल को पढ़े, बिना बिल को जाने राजनेताओं की बातों में आकर जेनरेटर चोरी कर ले उन इंसानों को कवियों की कहीं बातें किस तरह से समझ आएंगी? अगर उनमे उतनी बुद्धि या समझ होती तो देश के यह हालात होते ही न, ऐसे में इतने नाज़ुक समय में आप गोदामों को आग लगाने और संसद को उखाड़ने के लिए कहना कहाँ की समझदारी हैं?