यह आंदोलन कृषि कानून से जुड़ा हैं या फिर दंगाइयों के?

सरकार ने यह साफ़ कर दिया है की जिसे यह कानून पसंद नहीं हैं वह जाकर पुराने तरीके से मंडी में अपना सामान बेचता रहे. मंडी और MSP दोनों ही बंद नहीं हो रहे, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जरूरी नहीं बल्कि एक प्रकार का विकल्प हैं. अगर आपको यह विकल्प पसंद हैं तो आप इसे अपनाएँ, अगर नहीं तो आप न अपनायें.

इसके बावजूद पंजाब के कथित किसान दिल्ली को जाम करने पर अड़े हुए हैं. अब धीरे-धीरे यह किसान आंदोलन CAA और NRC आंदोलन में बदलता जा रहा हैं. बस फरक यह था की, पहले इस आंदोलन में मुस्लिम महिलाओं को आगे किया गया था और अब इस आंदोलन में सिक्खों को आगे कर दिया गया हैं.

अगर सरकार इन आंदोलनकारियों पर कुछ भी एक्शन लेती हैं तो खालिस्तान अपने अलग देश की मांग को तेज़ कर सकेंगे. इसलिए भारत सरकार को हर कदम सोच समझ कर उठाना पड़ रहा हैं. ऐसे में अब यह आंदोलनकारी भी धीरे धीरे खुलकर शाहीन बाग़ के दंगाइयों के समर्थन में उतर आये हैं.

वामपंथी मीडिया जिस आंदोलन को शांतिप्रिय बता रही हैं, CAA का वह आंदोलन एक दंगे के बाद ख़त्म हुआ था जिसमें 50 से ज्यादा लोगों की जान गयी थी. इसी लिए तमाम ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया गया, जो की इस दंगे की प्लानिंग में शामिल थी. मतलब जिन्होंने इस दंगे के लिए फंड इक्क्ठा किये, जिन्होंने इस दंगे के लिए सामान इक्क्ठा करवाया वह सब जेलों में बंद हैं.

किसान अब मांग कर रहें हैं की ऐसे दंगाइयों को भी रिहा करो तब हम सड़कों से उठेंगे. इससे यह बात तो साफ़ होती हैं की आंदोलन का मकसद केवल और केवल मोदी के खिलाफ विरोध करने का हैं. पंजाब के शहर अमृतसर के कांग्रेस सांसद ने एक गुरजीत सिंह औजला द्वारा की गयी एक पोस्ट से भी साफ़ होता है की यह आंदोलन किसानों का नहीं बल्कि आरहतिया का हैं.

इस पोस्ट में वह पंजाबी में लिखते हैं की, “अमृतसर दाना मंडी / आरहतिया अध्यक्ष श्री की अध्यक्षता में अमनदीप सिंह छीना की अध्यक्षता में कुछ साथी किसानों का समर्थन करने के लिए दिल्ली बॉर्डर के लिए निकल पड़े हैं. मैं उनका हार्दिक स्वागत करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि संघर्ष रंग लाये.” तो अगर आरहतियों को इतनी चिंता होती है किसानों की तो क्या देश के किसानों की दुर्दशा आज ऐसी होती?

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