जैसा की आप सब जानते हैं जब अंग्रेज़ भारत से गए तो भारत में बहुत सारी रियासतें थी. जिसकी जिम्मेदारी सरदार पटेल अपने कंधो पर लेकर सभी को एकजुट कर दिया. इन्हीं रियासतों में एक रियासत नेपाल भी थी और 1951 में नेपाल के राजा त्रिभुवन ने भारत में विलय होने की इच्छा जताई.
नेपाल का कहना था की हमारी रियासत हिन्दू राष्ट्र है और भारत एक हिन्दू बहुल देश हैं. इसलिए हमारा एक होना भविष्य में दोनों के लिए अच्छा साबित होगा. नेपाल को उस समय डर था की जिस प्रकार चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया हैं उसी प्रकार वह नेपाल पर भी कर लेगा.
इससे पहले चीन अपनी विस्तारवादी निति के तहत नेपाल पर कब्ज़ा करे हमें भारत में विलय कर लेना चाहिए. अगर नेपाल भारत का एक राज्य बन गया तो वह चीन के सामने डटकर खड़ा हो जायेगा. नेपाल के राजा ने कहा की जिस प्रकार भारत के राजा अपना जीवन व्यतीत कर रहें हैं, मैं भी ऐसे जीने के लिए तैयार हूँ.
नेपाल भारत का एक समान्य राज्य बनेगा जहां भारत का संविधान और लोकतंत्र चलेगा. लेकिन नेहरू जो की पूरी दुनिया में हिंदी-चीनी भाई-भाई का ढोल पीट रहे थे, उन्हें पता था की अगर भारत ने नेपाल को अपने कब्ज़े में लिया तो चीन इससे नाराज़ हो जायेगा.
नेहरू के अदूरदर्शी सोच का नतीजा रहा है की आज नेपाल में वामपंथी सरकार चला रहें हैं. नेपाल अब हिन्दुराष्ट्र नहीं रहा, वामपंथियों ने उसे भी एक सेक्युलर देश घोसित कर दिया हैं. कुछ समय पहले यह भी खबर मिली थी की चीन ने नेपाल के कई गांवों पर अपना कब्ज़ा कर लिया हैं.
ऐसे में देखा जाये तो नेपाल के राजा को जिस बात का डर था आज 70 साल बाद नेपाल उसी स्थिति में पहुँच चूका हैं. नेपाल की वामपंथी सरकार भारत के खिलाफ कभी बयान तो कभी अपने देश का ऐसा नक्शा पेश करती हैं जिससे भारत के लोग और सरकार दोनों नाराज़ हों. वहीं नेपाल की सरकार चीन से अंधाधुन क़र्ज़ लेने में लगी हुई हैं जो आने वाले वक़्त में चीन के कब्ज़े वाले दावे को मजबूत करेगा.