भारत में बहुत सारे राज्यों में खेती होती हैं, सबसे ज्यादा खेती उत्तर प्रदेश में होती हैं. इसके बावजूद पंजाब में अपनी राजनीती चमकाने के लिए नेता किसानों को सड़कों पर ले आये. पंजाब में जो बिल पास ही नहीं हुआ उसके विरोध में यह दिल्ली को कैद करने चले पड़े.
धीरे-धीरे यह आंदोलन खालिस्तानियों द्वारा हाई-जैक कर लिया गया और किसान नेताओं के लिए यह गले की हड्डी बन गया. अब न तो वह खालिस्तानियों का विरोध कर सकते हैं और न ही उनका समर्थन. ऐसे में सबसे ज्यादा बुरा हाल आम आदमी पार्टी के नेताओं का हो रहा हैं.
पंजाब में 40 प्रतिशत हिन्दू वोट मजूद हैं, शिरोमणि अकाली दल को इनका फायदा तब मिलता था जब यह बीजेपी के साथ चुनाव लड़ते थे. अब अकाली दल, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस किसान आंदोलन में अपनी राजनीती चमकाने के लिए कहीं न कहीं खालिस्तानी नेताओं का समर्थन कर रही हैं जिसे पंजाब के हिन्दू देख और सुन रहें हैं.
जोगराज सिंह जैसे खालिस्तानी समर्थक हिन्दुवों को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान दे रहें हैं, रंजीत बावा जैसे पंजाबी गायक तो मंदिरों में पूजनीय भगवानों का भी मजाक उड़ाते दिखे. ऐसे में 2022 विधानसभा चुनाव में यह पार्टियां हिन्दू वोट हासिल कर सकेंगे?
क्योंकि अभी से ही किसान आंदोलन के बाद कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी के कुछ नेता बीजेपी में शामिल होना शुरू हो चुके हैं. किसान आंदोलन दरअसल किसानों का आंदोलन नहीं बल्कि विचौलियों का आंदोलन हैं, जिन्हें पंजाब में आढ़तिये भी कहा जाता हैं.
ऐसे में जो सही में किसान होगा और इस बिल को पढ़ेगा तो वह इस बात को समझ जायेगा की पार्टियां आढ़तियों के दबाव में आकर किसानों को इस बिल के खिलाफ भड़का रही हैं. आपने देखा होगा पिछले कुछ समय से पंजाब में बिलकुल ग्राउंड लेवल पर बीजेपी अपनी पार्टी की पकड़ मजबूत कर रही हैं.
हालाँकि कुछ राजनितिक पंडितों का कहना है की अगर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तीनों को इतनी सीटें मिलती हैं की यह गठबंधन की सरकार बना सके तो यह सरकार बनाने में देर नहीं करेंगे. हालाँकि यह सरकार कितने समय तक चलेगी यह कहना मुश्किल हैं, लेकिन बीजेपी पंजाब में एक तरफ़ा जीत हासिल करने के लिए हर संभावना को तलाशने में लगी हुई हैं.