नेपाल पहले एक हिन्दुराष्ट्र था, केपी ओली की सरकार ने नया संविधान लाकर इसे धर्म निरपेक्ष बना दिया. धर्म निरपेक्ष भारत के क्या हालात हैं दुनिया से छुपे नहीं हैं, मुस्लिम तुष्टिकरण की वजह से आज़ादी के महज़ 70 साल बाद मुस्लिम नेता दुबारा अपना हिस्सा मांगते नज़र आते हैं. ऐसे में नेपाल के लोग नेपाल को हिन्दुराष्ट्र ही बने रहने के लिए आंदोलन कर रहें हैं.
जबसे नया संविधान पास हुआ हैं, नेपाल को दुबारा हिन्दुराष्ट्र बनाने के लिए मांग उठती रही हैं. लेकिन अब काठमांडू और नेपाल के अन्य बड़े शहरों में देशव्यापी आंदोलन शुरू हो चूका हैं. इसके इलावा नेपाल में लोकतंत्र ख़त्म कर राजशाही को पुनः बहाल करने की भी मांग उठने लगी हैं.
आपको बता दें की नेपाल में लोकतंत्र तब आया जब नेपाल के राजा और उनके परिवार के सभी सदस्यों की हत्या करवा दी गयी थी. इस हत्या के पीछे भारतीय रॉ एजेंसी को जिम्मेदार माना जाता है जो की राजीव गाँधी के कहने पर एक्शन में आई थी. उसके बाद भारतीय कांग्रेस सरकारों अपने डिप्लोमेट्स की मदद से नेपाल में राजशाही ख़त्म कर 2008 में इसे लोकतांत्रिक देश बनवा दिया. लोकतंत्र होते ही बड़े से छोटे पदों पर चीन की छत्र छाया वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने कब्ज़ा कर लिया.
हालांकि यह सब कही सुनी बातें हैं, ठोस आधार न नेपाल के पास हैं और न ही उन मीडिया वालो के पास जिन्होंने इन ख़बरों को चलाया था. अब नेपाल में चल रहे इन आंदोलनों को लेकर मोदी की कूटनीति क्यों बताई जा रही हैं? दरअसल अक्टूबर के अंत तक नेपाल में मामला बिलकुल शांत था, उसके बाद नवंबर की शुरुआत में भारतीय सेना अधिकारी और भारतीय डिप्लोमेट्स ने नेपाल का दौरा किया. इस दौरे के कुछ दिन बाद ही नेपाल में पहले हिन्दुराष्ट्र और फिर राजशाही बहाल करने को लेकर आंदोलन शुरू हो गए.
भारत की कांग्रेस का झुकाव चीन की तरफ कितना ज्यादा हैं आप सब जानते हैं. फिर चाहे ऐसे समझौते हों जिसके बाद चीन ने भारतीय बाजार पर कब्ज़ा कर सभी छोटे उद्योगों की कमर तोड़ी हो या फिर 2008 तक नेपाल में राजशाही ख़त्म करके लोकतंत्र की व्यवस्था की गयी हो. लेकिन नेपाल में लोकतंत्र आते ही कम्युनिस्ट ने सभी एहम पदों पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली.
जिससे उनका झुकाव चीन की तरफ हो गया और चीन भी धीरे-धीरे अपनी विस्तारवादी निति के जरिये नेपाल के कई हिस्सों पर कब्ज़ा जमाना शुरू किया. जो की भारत के लिए बेहद खतरनाक संकेत थे. ऐसे में नेपाल की जनता के बीच चीनी विरोधी लहर पैदा करना भारत के लिए आसान हो गया और अब वहां चल रहे आंदोलन आगे क्या रुख लेंगे यह आने वाला वक़्त ही बताएगा.