भ्रस्टाचार के आरोप में अगर कोई नेता जेल में जाता हैं तो वह सिर्फ नाम का ही जेल में जाता हैं. बाकी जेल भी उसके लिए किसी बंगले से कम नहीं होती, लेकिन क्या हो अगर उस नेता को बंगले में ही शिफ्ट कर दिया जाये तो? ऐसा ही हो रहा है झारखंड की जेल में सज़ा काट रहे लालू प्रसाद यादव के साथ.
लालू अपना ज्यादातर वक़्त उम्र और बिमारी का बहाना बनाते हुए, 5 हॉस्पिटल में बिता रहें हैं. इसके बावजूद झारखण्ड की कांग्रेस के समर्थन से बनी सोरेन सरकार ने लालू प्रसाद यादव को सुख सुविधाएँ देते हुए बंगले में ही शिफ्ट कर दिया. इससे पहले खबर आयी थी लालू प्रसाद यादव को जेल में फ़ोन मुहैया करवाया गया था.
बिहार चुनाव के समय उन्होंने बीजेपी के एक विधायक को फ़ोन करके लालच देने का प्रयास किया था. बीजेपी का विधायक उनकी बातों में नहीं आया और उसने मीडिया के सामने लालू के पास फ़ोन होने बात कह डाली. अब इन सभी बातों पर हाई कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगते हुए कारन बताओ नोटिस जारी किया हैं.
हाई कोर्ट ने कहा है की लालू प्रसाद यादव को रिम्स के वार्ड से बंगले में क्यों शिफ्ट किया गया और जब खबर बाहर आई तो उन्हें वापिस बंगले से रिम्स क्यों भेजा गया? हाई कोर्ट का कहना है की वार्ड से बंगले में शिफ्ट करने का फैसला किसका था? हमें इसके बारे में पूरी जानकारी चाहिए.
हाई कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव के सेवादार की नियुक्ति को लेकर भी सोरेन सरकार से रिपोर्ट मांगी हैं. हाई कोर्ट ने कहा की हमें इस बारे में एक रिपोर्ट बनाकर दी जाए की झारखण्ड सरकार ने भ्रस्टाचार के आरोपी के लिए संविधान में किन प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए सेवादार की नियुक्ति की हैं और इसकी चयन प्रक्रिया क्या होती हैं. हाई कोर्ट ने सभी सवालों पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए सरकार को 18 दिसंबर तक का समय दिया हैं.