कल दिल्ली में किसानों और सरकार के बीच बैठक होने वाली हैं, इससे पहले किसान नेताओं ने सरकार के सामने अपनी मांगे रखते हुए कहा था कृषि सुधार कानून से जुड़े तीनों बिलों को वापिस ले लिया जाये और इसके बदले में नए बिल पेश किये जाये. इन बिलों में किसी तरह का कोई संसोधन हमें मंजूर नहीं हैं.
दूसरी तरफ सरकार का कहना हैं की कृषि सुधार कानून में अगर किसान नेता कुछ बदलाव चाहते हैं तो हम बदलाव करने को तैयार हैं. इसके साथ अगर किसान नेताओं के मन में बिल को लेकर कोई शंका हैं तो हम उस शंका को भी दूर करने के लिए तैयार हैं.
इन सबके बावजूद अब किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikat) ने कहा कि, “तीनों कृषि कानूनों के विरोध में 8 दिसंबर को एक दिवसीय भारत बंद का आह्वान किया गया है.” संयुक्त किसान मोर्चा के हरिंदर सिंह लखोवाल ने मीडिया से बातचीत करते हुए इसी सन्दर्भ में कहा की, “5 दिसंबर की बैठक में अगर सरकार हमारी बातें नहीं मानती है तो हम 8 दिसंबर को भारत बंद करेंगे. देशभर का किसान दिल्ली आने को तैयार. पंजाब के सभी किसानों के साथ देशभर के किसानों की मींटिग हुई है. जिसमें यह तय किया गया है कि अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो भारत बंद करेंगे. हम इस कानून को वापस करा कर ही धरना खत्म करेंगे.”
हरिंदर सिंह लखोवाल अपने बयान में आगे कहा की, “5 दिंसबर को सरकार के पुतले फूंके जाएंगे. 7 तारीख को मेडल वापस किए जाएंगे. 8 तारीख को पूरा देश बंद करने का प्लान है. सभी नाके बंद किए जाएंगे. यह हमारी लंबी लड़ाई है. सरकार विधानसभा सत्र बुलाए और इन कानूनों को रद्द करे. ये तीनों कृषि कानून किसानों के लिए कोरोना से भी बड़ी बीमारी हैं. लड़ाई आर-पार की होगी, पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है.”
ऐसे में सवाल यह भी उठता है की अगर इस तरह का शांतिमय प्रदर्शन अगर किसान नेताओं की वजह से भड़क जाता हैं तो इसका जिम्मेदार कौन होगा. हो सकता है की बिलों में कुछ प्रावधान हों, जिसको लेकर किसान नेताओं के मन में कुछ शंका हो. लेकिन अगर सरकार उन प्रावधानों को बदलने के लिए तैयार होती है या शंका दूर करती है तो फिर इसमें बुराई क्या हैं? क्या किसान नेता नहीं चाहते की किसानों के सर से बिचौलियों का बोझ दूर हो?