कल सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल हो रही थी, यह तस्वीरें पलामू के सलामदिरी में माओवादी आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ के बाद जारी की गयी. सेना ने तस्वीरें जारी करते हुए माओवादी आतंकियों के पास पकड़ा गया सामान दिखाया. इस सामान में बंदूकों के साथ-साथ डिलडो और वाइब्रेटर भी मिले.
आज के समय में डिलडो और वाइब्रेटर क्या होता है, सबको पता ही होगा. आपको बता दें की माओवंशी वामपंथी छात्राओं को जंगलों में ले जाकर अपनी हवस को पूरा करते हैं, यह इन्हें अपना गुलाम बना लेते हैं या फिर यह खुद ही माओवाद के रास्ते पर चल पड़ती हैं. इसी सन्दर्भ में गढ़चिरौली पुलिस को आत्मसमर्पण करने वाली मोती उर्फ राधा ने भी इस पुरे खेल के बारे में सार्वजानिक रूप से बताया था.
उसने बताया था की जलना जंगल (बोकारो) का संतोष महतो हो, सपन तुडु हो, हजारीबाग इलाके के सुदर्शन और विनय हों, मनीष और करम हों, राँची के गुरुपीरा का कुंदन प्रधान हो, लक्खीसराय का सिधु कोड़ा हो, माओवादी नक्सली आतंकी गाँव की आदिवासी लड़कियों को जबरन जंगल में उठा ले जाते हैं. अगर उनका परिवार या वह खुद इसका विरोध करे तो उसे जान से हाथ धोना पड़ जाता हैं.
अगर वामपंथ की बात करें तो वह वीमेन एम्पावरमेंट का मतलब ही शारीरिक सुख से जोड़कर बताते हैं, इसके फायदों से लेकर इसकी आज़ादी तक की बातें करने वाले वामपंथी अपने मित्र पत्रकारों की मदद से ऐसी घटनाओं को समाज के सामने आने से रोक देते हैं.
इसी सन्दर्भ में एक वामपंथी नेता ने बयान देते हुए कहा था की, “अमूमन, सर्वहारा की क्रांति में लड़कियों का इतना ही महत्व है. लेकिन ‘इतना ही’ का मतलब कम न समझें. जंगलों में भी शरीर की जरूरतें होती ही हैं. फासीवादियों से हमारी लड़ाई लम्बी चलेगी, इसलिए हमें जंगल में भी कॉलेज जैसा माहौल चाहिए. क्रांति तो होती रहेगी, लेकिन माहौल में किसी भी तरह की कमी होने से सीनियर नेता दुखी हो जाते हैं.”
ऐसे में सवाल यह उठता है की भारतीय जवानों को ज्यादा खतरा किससे हैं? सरहद के पार से आने वाले आतंकियों से? देश के अंदर आतंकियों का समर्थन या सहानुभूति रखने वालो से? माओवादी आतंकियों से? या फिर चीन की सेना और उनके भारत में मजूद चीनी सरकार और सेना के समर्थकों से?