26 नवंबर का दिन देश में शायद ही कोई व्यक्ति भुला पाए. इस दिन को भारत के लोग संविधान दिवस के रूप में भी मनाते हैं और साथ ही मुंबई हमले के दौरान मारे गए लोगों को याद भी किया जाता हैं. इसी सन्दर्भ में कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने गुजरात के केवड़िया में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करते हुए 26/11 हमले में मारे गए जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित और संविधान निर्माण में मुख्य भूमिका निभाने वाले लोगों को भी याद किया.
इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक राष्ट्र, एक चुनाव पर बयान देते हुए कहा की, “यह केवल विमर्श का विषय नहीं है बल्कि देश की जरूरत है. इससे विकासात्मक कार्य बाधित होता है, जिसके बारे में सब जानते हैं. उन्होंने कहा कि लोकसभा, विधानसभा और अन्य चुनावों के लिए एक लिस्ट का इस्तेमाल होना चाहिए. अब क्यों पैसा और समय इन पर बर्बाद कर रहे हैं?”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा की अब वक़्त आ गया है की देश के आम नागरिक के पास भी दोनों सदनों के कामगाज़ का डाटा उपलब्ध हो, इसके लिए हमें पूर्ण रूप से डिजिटाइजेशन पर जोर देना होगा. उन्होंने इस विषय पर युवा सांसदों को विधानसभा में चर्चा करने का भी न्यौता दिया हैं.
संविधान की बेचीदियों के बारे में बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा की, “हमारे यहाँ बड़ी समस्या ये भी रही है कि संवैधानिक और कानूनी भाषा, उस व्यक्ति को समझने में मुश्किल होती है जिसके लिए वो कानून बना है. मुश्किल शब्द, लंबी-लंबी लाइनें, बड़े-बड़े पैराग्राफ, क्लॉज-सब क्लॉज, यानि जाने-अनजाने एक मुश्किल जाल बन जाता है.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र ने कहा की संविधान में अब भी ऐसे हज़ारो कानून हैं जो अपना महत्व खो चुके हैं, हम 2014 के बाद से सैंकड़ों ऐसे कानूनों को ख़त्म कर चुके हैं. ऐसे कानूनों को हटाने की प्रक्रिया को सरल बनाना होगा, जिससे अपना महत्व खो चुके कानून को आसान तरीके से संविधान से हटाया जा सके.
प्रधानमंत्री ने देश की सरकारों को राष्ट्रहित में फैसले लेने के लिए आग्रह करते हुए कहा की जब सरकारें देशहित और लोकहित के तराजू पर राजनीति हावी होने देती हैं तब देश की जनता को नुक्सान उठाना पड़ता हैं. उन्होंने सरदार सरोवर डैम का उदाहरण देते हुए कहा की यह आज़ादी के कुछ साल पहले शुरू हुआ था और अब कुछ साल पहले ही बनकर पूरा हुआ. अगर इसपर राजनीती न होती और राष्ट्रहित का सोच कार्य को आगे बढ़ाते तो यह आज़ादी के बाद एक दो दशकों में पूरा बन जाता.