बिहार के नितीश कुमार ने वह कारनामा कर दिखाया है जिसे बड़े बड़े नेता करने से अक्सर चूक जाते हैं. नितीश कुमार ने बिहार में सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली हैं. हालाँकि आज़ाद भारत में कभी ऐसा नहीं हुआ की बिहार में बिना किसी मुस्लिम मंत्री के सरकार बनी हो, लेकिन 2020 में सब मुमकिन हैं.
दरअसल NDA ने बिहार में 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दी थी, इनमें से ज्यादातर उम्मीदवार मुस्लिम बहुल इलाके से चुनाव लड़ रहे थे. ऐसे में ओवैसी ने भी बिहार में चुनाव लड़ने का मन बना लिया और मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने प्रत्याशी उतार दिए. एक तरफ ओवैसी की पार्टी के 5 उम्मीदवार जीत गए वहीं दूसरी जगहों पर जहां ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी नहीं जीत सके वहां NDA के मुस्लिम उम्मीदवारों के इतने वोट कटे की NDA का कोई मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया.
इस बार नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल में दलित, भूमिहार, ब्रह्मण, यादव और राजपूत को जगह दी हैं. पिछली बार जहां पुरे बिहार में कुल 24 मुस्लिम नेताओं ने जीत हासिल की थी, वहीं 2020 में यह घटकर 19 रह गए. आपको जाकनर हैरानी होगी की बिहार में 15 प्रतिशत आबादी मुस्लिम हैं.
नीतीश कुमार की सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहे खुर्शीद उर्फ फिरोज को भी इस बार हार का सामना करना पड़ा. JDU के पास अभी भी कई मुस्लिम पार्षद मजूद हैं, ऐसे में हो सकता है की मंत्रिमंडल के विस्तार के समय इन्हीं पार्षदों में से किसी एक को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सके.
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहे खुर्शीद उर्फ फिरोज ने तब विधानसभा में ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए थे, जब NDA ने बिहार में विश्वासमत हासिल कर लिया था. उसके बाद इतना विवाद हुआ की उनके खिलाफ इमारत-ए-शरिया ने फतवा जारी कर दिया था और खुर्शीद ने बयान देते कहा था की, “मैं उन सभी लोगों से माफी मांगता हूं, जिन्हें तकलीफ हुई है. मैंने किसी को गाली नहीं दी. किसी ने मुझसे पूछा नहीं के मेरे दिल में क्या है?”
आपको शायद पता न हो लेकिन 1970 में अब्दुल गफ्फूर ने समता पार्टी बनाई थी जो 1999 में JDU बन गयी थी. 1985 में इस पार्टी के बिहार में 34 मुस्लिम विधायक चुने गए थे. उस वक़्त किसी ने नहीं सोचा होगा की एक वक़्त ऐसा आएगा जब इस पार्टी से एक भी मुस्लिम विधायक का जीतना मुश्किल होगा.