पश्चमी बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की परेशानी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही क्योंकि तृणमूल के दो वरिष्ठ नेताओं मंत्री रबींद्रनाथ भट्टाचार्य और विधायक बेचाराम मन्ना में हुए मतभेद अब खुलकर मीडिया की सुर्ख़ियों का हिस्सा बनने लगे हैं. आपको बताना चाहेंगे की पश्चमी बंगाल में हुए सिंगुर आंदोलन में इन दोनों नेताओं की मुख्य भूमिका रही हैं.
तृणमूल कांग्रेस में मतभेद होने चलते दोनों ही नेताओं ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया हैं. ऐसे में ममता बनर्जी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह जिम्मेदारी सौंपी हैं की वह इन दोनों नेताओं के आपसी मतभेदों को दूर करें. आपको बता दें की दोनों नेताओं ने सिंगुर में टाटा नैनो के प्लांट पर रोक लगाने वाले आंदोलन की एहम भूमिका निभाई थी.
गौरतलब है की ऐसे आंदोलन केवल और केवल भारतीय या फिर जापान की कार निर्माता कंपनी के लिए ही होता हैं. आपने पुरे भारत में कभी भी चीनी कार निर्माता कंपनी या फिर चीनी कारखाने फिर चाहे मोबाइल का हो या किसी और चीज़ का उसका विरोध नहीं देखा होगा. गुजरात में हुए एक स्टिंग के दौरान पता चला था की चीनी सरकार भारत के कई NGO को भारी रकम फंड करती है ताकि दुनिया की कोई दूसरी कंपनी भारत में टिक न सके और न ही भारतीय कंपनियों का विस्तार हो सके.
इससे भारत की जनसँख्या के हिसाब से भारत में सामान नहीं बन पायेगा और उसे अपनी आपूर्ति के लिए चीनी कंपनियों के लिए अपने देश के व्यापारिक दरवाजे खोलने ही पड़ेंगे. खैर सिंगुर में हुए इस आंदोलन के बाद टाटा के नैनो ब्रांड को इतना नुक्सान हुआ की उसे आखिरकार टाटा नैनो बनानी बंद करनी पड़ी.
नुक्सान की बात करें तो यहाँ सिर्फ टाटा का ही नहीं बल्कि सिंगुर की जनता का भी हुआ. टाटा नैनो का प्लांट अगर लग जाता और चल जाता तो सिंगुर में रोज़गार की कमी ख़त्म हो जाती. इसके इलावा वहां आस पास की भूमि के रेट बढ़ जाते और जिनके पास घर हैं वो किराए पर चढ़ा पाते क्योंकि टाटा नैनो प्लांट में काम करने के लिए शहर या राज्य से बाहर से लोग भी आते. इसके इलावा छोटी किराने की दूकान, दूध वाला खाने पीने की दुकाने आदि सबका रोजगार देखते ही देखते चल पड़ता.
अब तृणमूल कांग्रेस को अपने पापों का अंत नज़र आना शुरू हो चूका हैं, इसी लिए यह नेता अब हारने वाली पार्टी से निकल कर चुनाव से पहले ही पासा बदलने की तैयारी में नज़र आ रहें हैं.