बिहार में तेजस्वी यादव के तूफ़ान को महज़ हवा का झोंका बनाने में सबसे बड़ी भूमिका कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने निभाई हैं. राहुल गाँधी ने वही किया जो तेजस्वी से पहले अखिलेश के साथ किया था, जरूरत से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा और जरूरत से ज्यादा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा, नतीजा राज्य की मजबूत पार्टी भी बड़ी जीत से चूक गयी.
राजनीती में गठबंधन का मतलब स्कूटर पर लगे दो टायर की तरह होता हैं. अगर एक टायर भी पंचर हुआ तो दूसरा चुनाव में बाजी मार जाएगा. उदाहरण के लिए NDA देखें JDU इस बार अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई तो BJP ने JDU से अच्छा प्रदर्शन किया. इससे पहले BJP अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती थी तो JDU अच्छा प्रदर्शन कर देती थी जिस वजह से बिहार में NDA की सरकार बन जाती थी.
कांग्रेस के महागठबंधन की बात करें तो RJD ने उम्मीद से भी अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन 90 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस 20 सीटें भी जीत नहीं सकी नतीजा महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा. इस हार के लिए केवल कांग्रेस के राहुल गाँधी ही जिम्मेदार नहीं हैं. बल्कि महागठबंधन की इस हार में सबसे अहम भूमिका हैदराबाद के सांसद और AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी निभाई.
असदुद्दीन ओवैसी ने महागठबंधन की झोली में गिरने वाले मुस्लिम वोटों को काट दिया. जिस वजह से न तो वह खुद जीत पाए और न ही महागठबंधन के प्रत्याशी को जीतने दिया. असदुद्दीन ओवैसी के इलावा LJP ने भी बहुत सारी सीटों पर वोट काटे हैं, हालांकि चिराग पासवान को उम्मीद थी की उनके पिता की मृत्यु के बाद शोक लहर में उनकी पार्टी को भारी बहुमत मिलेगा लेकिन अंत में उन्हें मात्र 1 सीट से संतोष करना पड़ा.
इन चुनावों में रविश कुमार के भाई ब्रजेश पांडेय भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. आपको बता दें की ब्रजेश पांडेय के भाई पर एक नाबालिक के बलात्कार का भी आरोप हैं. इसके बावजूद कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया और कांग्रेस की उम्मीद के उलट जनता ने ब्रजेश पांडेय को नकार दिया.