विपक्षी दल और वामपंथी मीडिया ने बिहार में यह हवा चला दी थी की इस बार तेजस्वी की सरकार बन रही हैं. इसलिए अपना वोट NDA को डालकर खराब न करें, इस हवा का और नितीश कुमार के लगातार 15 साल मुख्यमंत्री बने रहने की वजह से बिहार में JDU को कुछ सीटों का नुक्सान भले ही हुआ हो परन्तु BJP ने उस नुक्सान की भरपाई करते हुए NDA की जीत को सुनिश्चित कर लिया हैं.
ओपिनियन पोल्स की माने और देखें तो महागठबंधन के नेता और प्रत्याशी सोशल मीडिया पर इसे मोदी और अमित शाह की हार बता रहे थे. सुबह जब रुझान आना शुरू हुए तो भी महागठबंधन के प्रवक्ता इसे मोदी और शाह की हार और लोकतंत्र की जीत बता रहें थे. कुछ समय बाद तस्वीर साफ़ हुई और धीरे-धीरे यह रुझान NDA के पक्ष में झुक गए जीत का मार्जिन बहुत ज्यादा कम था.
अंत तक पासा कहीं पर भी पलट सकता था ऐसे में आखिरी घंटों में एक बार महागठबंधन को उम्मीद की किरण नज़र तो आई लेकिन कुछ मिनटों में वह भी बुझ गयी. नतीजा यह हुआ की महाठबंधन के प्रवक्ता जहां पहले लोकतंत्र की जीत बता रहे थे, वही बाद में इस हार को EVM Hack बताने लगे.
अगर जीत की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें भी हम भूमिका अदा की उन्होंने सासाराम, गया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पटना, छपरा, पूर्वी पश्चिमी चंपारण, समस्तीपुर, दरभंगा, सहरसा, अररिया, फारबिसगंज में बैक-टू-बैक 12 रैलियां की और एनडीए के विरोध चल रही एक लहर को पूरी तरह से बदल दिया.
10 लाख नौकरियों का चुनावी वादा फ्री वैक्सीन के आगे फीका पड़ गया, कांग्रेस का हाफ बिजली का चुनावी वादा भी काम नहीं आया. क्योंकि राजस्थान और पंजाब में इस वादे को निभाना तो दूर की बात थी बिजली का रेट ही पहले से ज्यादा बढ़ा दिया था. बिहार चुनाव के बीच पाकिस्तान की तरफ से सबूत गैंग को करारा जवाब मिला जिसका फायदा भी बीजेपी को मिला.
विपक्ष ने ऐसे चुनावी वादों के सहारे बिहार जीतने की कल्पना की थी जो वादे वह पहले भी कई राज्यों में करके के बाद निभाने में नाकाम रहा था. लोग इस बात को अच्छे से जानते थे की वादे महज़ वादे ही रह जायेंगे. उधर विपक्ष भले ही नरेंद्र मोदी को कुछ भी कहें लेकिन लोगों ने एक बार फिर भरोसा दिखाया की वह नरेंद्र मोदी पर विश्वास करते हैं.