वैसे तो सेंसर बोर्ड का काम होता है फिल्म को सर्टिफिकेट देना, फिल्म कॉमेडी है, डरावनी हैं, एक्शन है, रोमांटिक है, सोशल बेस्ड है या बायोग्राफी है उस हिसाब से उसे सर्टिफिकेट दिया जाता है. उसके बाद लोगों की मर्जी होती है की वह उस फिल्म को देखना चाहते हैं या नहीं. लेकिन भारत, यह देश महान है और सेकुलरिज्म बहुत अंदर तक घुसा हुआ हैं.
इस वजह से भारत में सेंसर बोर्ड फिल्मों को सर्टिफिकेट ही नहीं देता बल्कि कुछ आपत्तिजनक लगने पर फिल्म मेकर्स द्वारा उस सीन को हटाने की भी मांग करता हैं. कई बार फिल्म ऐसी बनती हैं की, उसमे इतना कुछ काटना पड़ जाता है की फिर फिल्म का कोई मतलब ही नहीं रह जाता और उस दौरान फिल्म के मेकर्स फिल्म को रिलीस करने से ही मना कर देते हैं.
इसमें सबसे पहला नाम फिल्म ‘अनफ्रीडम’ का आता है यह फिल्म 2014 में रिलीस की जानी थी. लेकिन इस फिल्म में बहुत ज्यादा अश्लीलता थी और इस फिल्म को दो लड़कियों के ऊपर बनाया गया था जो एक दूसरे को प्यार करती थी. इस वजह से इस फिल्म को कभी सिनेमाघरों में आने ही नहीं दिया गया.
दूसरी फिल्म है ‘फायर’ इस फिल्म में भी दो औरते एक दूसरे से प्यार करने लगती हैं. यह दोनों देवरानी और जेठानी होती हैं, जो बाद में एक दूसरे के प्यार में पड़ जाती हैं. इस फिल्म में एक लड़की हिन्दू और दूसरी मुस्लिम होती हैं. जिस वजह से पुरे देश में धर्म के आधार पर भी इस फिल्म का इतना विरोध हुआ की यह कभी सिनेमा घर में नहीं आई.
2015 में बनी ‘द पेंटेड हाउस’ फिल्म पर इस लिए बैन लगाना पड़ा था क्योंकि इस फिल्म में एक बुजुर्ग और लड़की आपस में प्रेम में पड़ जाते हैं. जिसके बाद इस फिल्म में बहुत ज्यादा अश्लीलता भी दिखाई गयी थी नतीजा यह फिल्म भी सिनेमा घरों तक नहीं पहुँच सकी.
2005 में आई फिल्म सिंस यशराज बैनर के नीचे बनी ‘सिंस’ में एक जवान लड़की और पादरी के बीच प्रेम प्रसंग दिखाए गए. देश भर में ईसाई धर्म के लोगों ने आपत्ति जताई और यह फिल्म भी सिनेमाघरों तक नहीं पहुँच सकी. अकादमी अवॉर्ड 2007 के लिए नॉमिनेट होने वाली फिल्म ‘वाटर’ विधवा महिलाओं के जीवन से जुड़ी स्याह दुनिया को दिखाया गया था. लोगों को सत्य कड़वा लगा और इसपर खूब विवाद हुआ, नतीजा फिल्म बैन करनी पड़ी.