महाराष्ट्र में शिवसेना (Shivsena) का मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवसेना के कार्यकर्त्ता संजय राउत (Sanjay Raut) को चाणक्य कम नहीं आंकते. कुछ पत्रकार तो संजय राउत की तुलना बीजेपी (BJP) के बड़े नेता अमित शाह (Amit Shaj) से भी कर देते हैं. हालाँकि बीजेपी कार्यकर्त्ता और नेता संजय राउत को महज़ एक ऐसा नेता मानते हैं जो चाणक्य नहीं बल्कि मौका परस्त इंसान हैं.
इसका मुख्य कारण यह है की BJP के साथ मिलकर शिवसेना ने महाराष्ट्र में चुनाव लड़े थे. इन चुनावों में गठबंधन के कारण अकेली बीजेपी को उतनी सीटें नहीं मिली जिससे वह अकेले अपने दम पर सरकार बना सके. यह मौका था संजय राउत द्वारा अपनी राजनीती चमकाने का और इसलिए शिवसेना ने महाराष्ट्र में चुनाव का रिजल्ट आते ही सरकार बनाये जाने से ठीक पहले 2.5 साल शिवसेना के मुख्यमंत्री बनने वाली शर्त रख दी.
उसके बाद क्या हुआ आप सब जानते हैं, अब बिहार चुनाव को लेकर एक बार फिर संजय राउत मीडिया की सुर्ख़ियों का हिस्सा बनते हुए नज़र आ रहें हैं. उन्होंने चुनाव के नतीजे आने से पहले ही बिहार में NDA की बिदाई तय मान ली है और कहा है की, “नीतीश जी बहुत बड़े नेता हैं. वो अपनी पारी खेल चुके हैं. अगर कोई नेता कहता है कि ये मेरा आखिरी चुनाव है तो उन्हें सम्मान के साथ विदाई देनी चाहिए. बिहार की जनता इस विदाई के मौके का इंतज़ार कर रही थी. इस चुनाव में जनता उनको रिटायर कर देगी.”
आपको बता दें की नितीश कुमार ने 2020 बिहार चुनाव के दौरान अपनी आखिरी चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए कहा था की, “जान लीजिए आज चुनाव का आखिरी दिन है और परसों चुनाव हैं और यह मेरा अंतिम चुनाव है. अंत भला तो सब भला.” बाद में JDU की तरफ से बयान आया की नितीश कुमार के बयान को तोड़ मरोड़ कर दिखाया गया हैं. नितीश कुमार के कहने का मतलब था की यह इन चुनावों की उनकी आखिरी रैली हैं.
बिहार 2020 विधानसभा के ओपिनियन पोल की बात करें तो वह महागठबंधन के पक्ष में नज़र आ रहें हैं. अगर ऐसा हुआ तो लगभग 20 साल बाद पहले ख़त्म हो चुकी लालू प्रसाद यादव की पार्टी में फिर एक बार जान फूंक दी जाएगी. इसके साथ ही बिहार में गठबंधन के माध्यम से ही भले लेकिन कांग्रेस नेताओं को भी सरकार के मंत्रिमंडल में पद हासिल होगा.