पाकिस्तान ने अपने फिर से जेहादी मानसिकता का परिचय देते हुए और सिखों की पीठ में छुरा घोंपते हुए गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के प्रबंधन और रखरखाव का जिम्मा ‘पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति’ से छीनकर एक ऐसी संस्था को सौंप दिया है, जिसका सिख धर्म से न तो कोई लेना देना कर न ही उस संस्थान में किसी सिख को शामिल किया गया हैं.
पाकिस्तान ने अब गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के प्रबंधन और रखरखाव का पूरा जिम्मा ‘इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड’ को सौंप दिया हैं. इसके साथ ही भारतीय विदेश मंत्रालय ने पकिस्तान के राजदूत को समन जारी किया, जिसके बाद पाकिस्तानी राजदूत शाम के करीब 5:50 बजे दिल्ली के साउथ ब्लॉक पहुंचे.
लगभग एक साल पहले नवंबर 2019 में गुरुद्वारा करतारपुर साहिब से भारत के गुरदासपुर में डेरा बाबा साहिब के दरमियान एक कॉरिडोर बनाकर दोनों देशों ने आपसी रिश्ते मजबूत करने की और एक कदम उठाया था. जिसका लाभ पाकिस्तान को सबसे ज्यादा अमेरिकी डॉलर के रूप में हुआ.
पाकिस्तान ने गुरुद्वारा में दर्शन के करने लिए प्रति व्यक्ति 20 अमेरिकी डॉलर की फीस रखी हुई हैं. जबकि शुरुआत में फीस को लेकर किसी तरह की कोई बात नहीं की गयी थी. भारतीय सरकार ने इस फीस को हटाने के लिए पाकिस्तान पर दबाव भी बनाने की कोशिश की थी लेकिन खालिस्तानी और पंजाब सरकार ने फीस को जायज़ बताया और मामला ठंडा पड़ गया.
सिखों की करतारपुर गुरुद्वारा से धार्मिक भावना भी जुडी हुई हैं, क्योंकि करतारपुर साहिब को सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का निवास स्थान माना जाता हैं और यह वही गुरुद्वारा है जिसमें गुरुनानक देव जी ने अपनी अंतिम सांस भी ली थी. आज़ादी के बाद यह हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से चला गया. पाकिस्तान और भारत के द्वारा बनाये गए कॉरिडोर से पहले पंजाब के लोग दूरबीन के सहारे इस गुरूद्वारे के दर्शन किया करते थे.
अब देखना यह होगा की भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा जारी किये समन के बाद पाकिस्तान क्या अपने इस निर्णय को बदलता है? या फिर वह इस बात को साबित करता है की, यह सिखों के लिए धार्मिक मामला हो सकता है लेकिन पाकिस्तान और पाकिस्तानी सरकार के लिए यह केवल डॉलर कमाने का एक बिज़नेस मॉडल भर हैं.