बिहार में महागठबंधन अपनी जीत का दावा कर रहा है और नारा है ‘तेज़ रफ़्तार, तेजस्वी सरकार’. महागठबंधन का दावा है की बिहार में सरकार बनते ही वह बिहार में 10 लाख नौकरी देंगे. चुनावी विशेषज्ञ इस घोषणा को भले ही मास्टरस्ट्रोक बता रहें हो, लेकिन जनता को पता है की राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश में भी ऐसे ही कुछ लुभावने वादे किये गए थे. जिनका आज तक कुछ नहीं हुआ, जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार ही गिर गयी थी.
बिहार विधानसभा चुनाव की बात करें तो 28 अक्टूबर को RJD के गढ़ में 71 सीटों पर चुनाव हुए. 2010 विधानसभा चुनाव में NDA ने 61 सीटों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था. उसके बाद JDU, RJD आदि पार्टियों से मिलकर बने गठबंधन को 53 सीटें 2015 में मिली थी और NDA को मात्र 14 सीटें ही मिल पाई थी. यानी RJD जिस भी गठबंधन के साथ होगी पलड़ा उसी का भारी होगा.
दूसरे चरण की बात करें तो यह 3 नवंबर को 94 सीटों पर हुए मतदान से पूरा हो चूका हैं. मुंगेर की घटना की बाद लोगों में बहुत ज्यादा आक्रोश भरा हुआ था. फिर बीजेपी ने अपना चुनावी प्रचार इस्लामी कट्टरपंथी घटना पर करना शुरू किया, दूसरी तरफ दो मुसलमानों ने मंदिर में जाकर नमाज़ अदा कर दी और देखते ही देखते चुनावी समीकरण फिर से बदल गए.
बिहार चुनाव में एक मदद अनजाने में ही सही लेकिन पाकिस्तान की तरफ से भी NDA को मिली. पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ के विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई पर दिए गए बयान ने नरेंद्र मोदी को छवि को बिहार में बहुत ज्यादा मजबूत कर दिया और कांग्रेस पार्टी जो की सबूत मांगते नहीं थक रही थी, उसकी छवि और ज्यादा बिगड़ गयी.
अब तीसरे यानि आखिरी चरण में 78 सीटों पर वोटिंग होने वाली हैं, यह वोटिंग 7 नवंबर को होगी. यह सीटें NDA के लिए सरदर्दी से कम नहीं होगी क्योंकि यह सीमांचल, कोसी, तिरहुत और मिथिलांचल की सीटें हैं. यहां प्रवासी भारी संख्या में रहते हैं और कई सीटें तो ऐसी है जहां मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से अधिक हैं. ऐसे में न तो मुस्लिम NDA को वोट देंगे और प्रवासी मजदूरों का कोरोना संकट में क्या हाल हुआ है वो तो सब जानते ही हैं.
ऐसे में देखना यह काफी दिलचस्प होगा की क्या लोग यहां अपनी निजी मुश्किलों को भूलकर राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, ईसाई धर्मांतरण और विकास जैसे मसलों पर NDA के पक्ष में वोट डालते हैं या फिर महागठबंधन के 10 लाख नौकरियों वाले चुनावी वादे को लेकर वोट डालेंगे.