जैसा की हम सब जानते हैं, हमारे देश में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के नाम पर सरकारें हर साल अल्पसंख्यकों पर कितना पैसा खर्च करती हैं. ऐसे में क्या हो जब किसी राज्य में हिन्दू ही अल्पसंख्यक हो? भारत कोई हिन्दू राष्ट्र नहीं हैं, ऐसे में किसी राज्य में अगर हिन्दू अल्पसंख्यक हैं तो उसे अल्पसंख्यक क्यों नहीं माना जाता?
ऐसे मामलो के कई केस पुरे देश में कई अलग अलग अदालतों में चल रहें हैं. अब एक नई याचिका के तहत सभी केसों को किसी एक अदालत में ट्रांसफर करने को लेकर उच्च न्यायालय में अपील डाली गयी हैं. क्योंकि केस भले ही अलग अलग अदालतों में चल रहें हैं लेकिन सबका मुद्दा एक ही हैं.
इस केस से जुडी सबसे बड़ी कानूनी बाधा केंद्र की 26 साल पुरानी उस अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती देते हुए इसे रद्द करने की मांग तेज़ हो गयी हैं, इस अधिसूचना के तहत पांच समुदायों- मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को देश भर में अल्पसंख्यक घोसित किया गया हैं. जबकि यह कई राज्यों में अल्पसंख्यक नहीं बल्कि बहुसंख्यक हैं, परन्तु इस अधिसूचना के चलते अल्पसंख्यकों वाले सारे सरकारी लाभ उठा रहें हैं.
इस याचिका को भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर किया गया हैं. वह चाहते हैं की दिल्ली, मेघालय और गौहाटी हाई कोर्ट में लंबित वह मामले स्थानांतरण किए जाए को की राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2(सी) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रहें हैं.
आपको बता दें की यह भारतीय संविधान का एक ऐसा कानून हैं जिसमें हदें ही तय नहीं की गयी. दरअसल 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून को बनाया गया था, इसके बाद मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग गठित हुआ. उस समय पर अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय किए बिना यह बिल पास कर दिया गया था. जिस वजह से आज 8 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक होने के बावजूद सरकारी लाभ नहीं उठा पा रहें.
इसको लेकर पहले भी विवाद हुआ था तो केंद्र सरकार ने 30 जुलाई, 1997 में एक नोटिस जारी करते हुए कहा था की, राष्ट्रीय स्तर के किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को पूरे देश में अल्पसंख्यक कहलाये जाएंगे. फिर चाहे वह वह किसी राज्य में बहुसंख्यक हो. आपको बता दें की पूरी दुनिया में अल्पसंख्यकों की परिभाषा यह है की जिस देश में किसी समुदाय की आबादी उस देश की कुल आबादी का 2 प्रतिशत से कम होगी वह समुदाय अल्पसंख्यक कहलाये जाएंगे.
भारत में इसको लेकर ऐसी कोई भी परिभाषा तय नहीं की गयी हैं. जिस वजह से भारत में अल्पसंख्यक का मतलब यह है की अगर भारत में हिन्दुवों की संख्या 100 करोड़ है तो जब तक किसी दूसरे समुदाय की जनसँख्या 100 करोड़ से ज्यादा नहीं होगी तब तक वह अल्पसंख्यकों वाले सभी सरकारी योजनाओं के लाभ पाने का हक़दार होंगे.