MeToo not Tell Anyone Society taught women remain silent: सबसे पहले हम उन सभी स्त्री-पुरुषों को सलाम करते है जो इस विषय पर बेझिझक साथ खड़े हैं! हाल ही चल रहे #MeToo कैंपेन के समर्थन में स्त्रियों का होना स्वाभाविक है! क्योंकि यही वह वर्ग है! जिसने यौन शोषण की गहन पीड़ा उम्र के हर दौर में झेली है और नियम यह था कि ‘मौन’ रहना होगा! ये जो चुप्पी है न, ये कभी सिखाई नहीं जाती!
MeToo not Tell Anyone Society taught women remain silent –
वास्तव में बचपन से ही हमारे समाज में स्त्री के इर्दगिर्द ऐसा ही वातावरण बना दिया जाता है! या कुछ ऐसा कह लीजिये हम उसमे ही जन्म लेते है, जहाँ देह के साथ मान-सम्मान और इज़्ज़त के साथ जोड़ दिया जाता है! चाहे फिर इज़्ज़त को तार-तार करने वाला कोई भी क्यों ना हो! परन्तु जनाब इज़्ज़त तो एक स्त्री की ही जाती है! फिर चाहे उसका कोई घनिष्ठ मित्र या रिश्तेदार कोई गलत व्यव्हार करे, या कोई बाहर का इंसान! तो इज़्ज़त सिर्फ और सिर्फ स्त्री की ही जाती है!
समाज में कहाँ गया है बेटी तो घर की लाज है! ऐसे मसले को फिर घर में ही दबा दिया जाता है! फिर स्त्री को संस्कार, प्रतिष्ठा और अनुशासन के भारी लेबल के साथ सलीक़े से इस तरह स्थापित किया जाता है कि बदनामी, अपनों को खो देने का भय, उनकी चिंता, परिवार का सम्मान, कौन शादी करेगा? जैसे प्रश्नों की विभिन्न परतें उसके अस्तित्त्व पर लिपटती चली जाती हैं!
“किसी को बताना मत!” की सलाह के साथ कर्त्तव्य निभा लिया जाता है पर कोई एक पल भी नहीं सोचता कि उम्र भर उस घिनौने इंसान को अपनी आंखों के सामने कुटिलता से मुस्कुराते देख वो रोज कितनी दफ़ा टूटती होगी! भयभीत हो सिहर जाती होगी! ख़ुद को कमरे में बंद कर घंटों अकेले रहती होगी! उस लिजलिजे, घृणित स्पर्श को याद कर चीत्कार मार रातों को उठ-उठ बिलखती होगी! शायद उस घटना से कई और बार भी गुज़रती होगी! पर स्त्री है, इसलिए चुप रहना होगा!
यदि उसने एक अच्छा और सुखी बचपन जिया है तब भी वह स्वयं को एक सभ्य समाज में रहने लायक बनाने के लिए इन सारी बातों को उम्र-भर गांठ बांधे रखती रही है. तभी तो घर से बाहर जाते समय बीच राह कोई उसे टोकता, छूता, सीटी मारकर गंदे शब्द कहता! वह आंखें नीची कर चुपचाप निकल जाती! बोलने का मतलब, तमाशा और फिर घर की नाक का सवाल जो ठहरा! घर, ऑफिस, बस, ट्रेन, लम्बी लाइन, धार्मिक स्थल, शादी-ब्याह, पारिवारिक कार्यक्रम! हर परिचित/अपरिचित स्थान पर ऐसा होना और बर्दाश्त करना उसने अपनी नियति मान लिया!
हम यह पूरे दावे के साथ कह सकते है कि हर स्त्री ने कम या ज्यादा ही सही पर अपने जीवन में शारीरिक शोषण कभी-न-कभी न अवश्य ही झेला होगा! याद कीजिये बस या ट्रेन में वो अचानक से किसी कोहनी का स्पर्श, जांघों पर हाथ या लाइन में किसी का सटकर खड़ा होना, पलटकर देखने पर वही गन्दी निग़ाह और भद्दे इशारे और हमारा भीतर ही भीतर गड़ जाना!
दरअसल हमारा समाज, हमारी पीढ़ियां एक-दूसरे को चुप रहना सिखाती रहीं! उनकी सिसकियां घर की खोखली चारदीवारी के भीतर ही ‘सम्मानित’ होती रहीं! स्त्रियां हर बात पर झट से यूं ही नहीं रो देती हैं, ये कुछ दफ़न किये हुए किस्सों से उपजी गहन पीड़ा का वो भरा समुन्दर है जो जरा सी दरार देख भरभराकर बह उठता है!
शर्म अति है उन लोगो पर जो हाल के घटनाक्रम से बौखलाए हुए ऊलजलूल कहे जा रहे हैं! जिन लोगो को स्त्री के अब बोलने से इसलिए आपत्ति है कि वो ‘तब’ क्यों नहीं बोली? दरअसल ऐसे लोग जिन्हे सबूत की दरक़ार है, वे ये सवाल कभी अपने घर की स्त्रियों से करकर देखें! उनकी आँखों की नमी और आवाज़ की कंपकंपाहट आपके नीचे की ज़मीन खिसका देगी!
ये वो लोग है जिन्हे लगता है कि स्त्री उनकी बदौलत आगे बढ़ी और अब उसकी जुबां निकल आई है तो वे भी जान लें कि किसी की मदद कर देने से वे उसके शरीर के अधिकारी नहीं हो जाते! वहां उनका एक छोटा सा स्पर्श इंसान की जीवन तबाह कर देता है! देह के परे एक इंसान भी है उसमें कहीं, उसका सम्मान करना सीखिए!
आशंका है कि अब कोई नया भीषण मुद्दा योजनाओं की कड़ाही में खलबलाया जा रहा होगा जिसे जल्द ही सबके सामने परोस इस मुद्दे का मुंह शीघ्र ही बंद कर दिया जाएगा! क्योंकि यदि इसके दोषियों को सज़ा मिलने लगी तो देश की जेलें कम पड़ जायेंगी!
सज़ा!! हम भी क्या सोच रही है !
जरा ध्यान से अपने आसपास देखिये! कि हर बात पर गालीगलौज पर उतर आने वाले कुछ नेताओं या प्रवक्ताओं की बोलती इस विषय पर कैसे बंद है? वे पत्रकार या साहित्यकार जो जरा-जरा सी बात में क्रांति का उद्घोष कर रणक्षेत्र में कूद पड़ते हैं, इस समय मैदान छोड़ क्यों भाग खड़े हुए हैं? बवाल काट देने वाले सूरमाओं को सांप कैसे सूंघ गया है?
बड़े-बड़े नामों के गले में ये कौन-सी हड्डी फंसी हुई है जिससे उनसे न बोलते बन रहा है न उगलते?
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