हेलीकॉप्टर शॉट उड़ाने वाले राजा बाबू चला रहे ई रिक्शा, पढ़िए क्यों: दिव्यांग क्रिकेट सर्किट में अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से धमाल मचा चुके गाजियाबाद के राजा बाबू (Raja Babu) आज पेट पालने के लिए ई-रिक्शा चलाने के लिए मजबूर हैं। राजा बाबू इन दिनों ई-रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब वह व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे धोनी की तरह हेलिकॉप्टर शॉट मारा करते थे।
राजा बाबू उस दौरान चर्चा में आए जब साल 2017 में दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच हुए एक दिव्यांग क्रिकेट मैच में उन्होंने 20 गेंदों में 67 रन ठोक दिए थे। साल 2017 में राष्ट्रीय स्तर पर खेले गए इस मैच का नाम ‘हौसलों की उड़ान’ था, जिसमें राजा बाबू ने दिल्ली के खिलाफ उत्तर प्रदेश को जीत दिलाई थी। बता दें कि राजा बाबू बोर्ड ऑफ डिसेबल्ड क्रिकेट एसोसिएशन (BCDA) से मान्यता प्राप्त यूपी टीम के कप्तान भी रह चुके हैं।
हेलीकॉप्टर शॉट उड़ाने वाले राजा बाबू चला रहे ई रिक्शा, पढ़िए क्यों
राजा बाबू की जिंदगी ने उस समय मोड़ लिया जब उन्होंने एक हादसे में एक पैर गंवा दिया था. हादसे ने मानो उनकी जिंदगी ही बदल दी. वे बताते है कि, ‘1997 में स्कूल से घर लौटते वक्त एक ट्रेन हादसे में मैंने बायां पैर खो दिया. उस वक्त मेरे पिता रेलवे में ग्रेड IV कर्मचारी थे और कानपुर के पनकी में तैनात थे. हादसे के बाद मेरी पढ़ाई रुक गई क्योंकि परिवार स्कूल की फीस नहीं चुका सकता था. हादसे ने मेरी जिंदगी बदली मगर मैंने सपने देखना नहीं छोड़ा’.
जूते बनाने वाली फैक्ट्री में 200 रुपये दिहाड़ी पर किया काम…
शादी के बाद राजा पत्नी के साथ गाजियाबाद आ गए. यहां आकर उन्होंने जूते बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम किया. उन्होंने बताया कि, ‘मैंने जूता बनाने वाली एक फैक्ट्री में 200 रुपये दिहाड़ी पर काम शुरू किया. पैसा जरूरी था लेकिन क्रिकेट और फैक्ट्री के काम में तालमेल बिठा पाना बहुत मुश्किल हो रहा था इसलिए छह महीनों बाद नौकरी छोड़कर सिर्फ क्रिकेट पर फोकस करने की सोची’.
मजबूरी में दूध भी बेचना पड़ा…
कोरोना काल में 2020 में आई यूपी में दिव्यांग क्रिकेटर्स के लिए बनी चैरिटेबल संस्था-दिव्यांग क्रिकेट एसोसिएशन (डीसीए) भंग कर दी गई। जिसके चलते वहां से मिलने वाली मदद खत्म हो गई। जिसके बाद राजा बाबू कुछ महीने मैंने गाजियाबाद की सड़कों पर दूध बेचा और जब मौका मिला ई-रिक्शा चलाया। अभी मैं बहरामपुर और विजय नगर के बीच रोज करीब 10 घंटे ई-रिक्शा चलाने को मजबूर हूं ताकि सिर्फ 250-300 रुपये कमा सकूं।