महंगाई बढ़ाने में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतें प्रमुख भूमिका निभाती हैं। इनके दाम बढ़ने से चीजें महंगी हो जाती हैं और आपका बजट भी खराब हो जाता है। हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर दो बार उत्पाद शुल्क घटाकर आम लोगों को राहत देने का काम किया था. अब इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि सरकार इस संबंध में एक स्थायी विकल्प पर विचार कर रही है और सिर्फ दो दिन बाद बड़ा फैसला लेकर जनता को पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों पर बड़ी राहत दे सकती है। इस फैसले के बाद आपको कार में तेल भरने और किचन में खाना बनाने के बारे में नहीं सोचना पड़ेगा।
पीएम नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने सरकार के इस कदम के संकेत दिए हैं. देबरॉय ने कल और परसों चंडीगढ़ में होने वाली जीएसटी परिषद की बैठक से पहले कहा है कि इस बैठक में पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का काम किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने से महंगाई पर लगाम लगाने का कारगर तरीका उपलब्ध होगा। अगर ऐसा होता है तो पेट्रोल की कीमत में करीब 30 रुपये की कमी आएगी। हालांकि, राज्यों की ओर से इस कदम के कड़े विरोध की काफी गुंजाइश है।
राज्य नहीं चाहते कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। इसका कारण यह है कि इस कदम से उन्हें करीब 2 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा। बता दें कि साल 2020-21 में केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से 6 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला था. वर्तमान में पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय कर के अलावा राज्य अलग से वैट लगाते हैं। सबसे ज्यादा वैट राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश समेत कुछ राज्यों में है। पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय करों में कमी के बाद भाजपा शासित राज्यों ने भी वैट में कटौती की थी।