Captain ‘Vikram Batra’ the real hero of the film ‘Sher Shah’: आज यानी 12 अगस्त को OTT प्लेटफॉर्म अमेज़न प्राइम पर सिद्धार्थ मल्होत्रा की फिल्म ‘शेरशाह’ रिलीज़ हो गयी है. हम आपको बताते चलें कि यह फिल्म कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा (Vikram Batra) की बायॉपिक है. आर्मी में उन्हें शेरशाह उपनाम दिया गया था जो कि इस फिल्म का टाइटल भी है. विक्रम बत्रा भारतीय फौज का वह जवान जिनके नाम से पाकिस्तान के बंकर में छुपे बैठे दुश्मन भी थर-थर कांपते थे. हम आपको बता दें कि ‘शेरशाह’ (Shershah) का अर्थ ‘शेरों का राजा होता है .’
करीब 2 घंटे इस पिक्चर में सिर्फ शेरशाह की आवाज नहीं उनकी जिंदादिली , उनका अपने प्यार के प्रति लगाव, भारतीय फौज का साहस उनका पराक्रम आदि देखने को मिलता है . तोप के गोलों और LMG की गूंज के बीच कैप्टन विक्रम बत्रा की आवाज और उनके बोले गये शब्द रोंगटे खड़े कर देते है. हम आपको बता दे की कैप्टन बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी प्रेमिका डिंपल चीमा ने आज तक शादी नही की जिनका किरदार इस पिक्चर में कियारा आडवाणी ने निभाया है .
बत्रा अगर जिंदा वापस आते तो आर्मी के हेड होते-
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में 9 सितंबर 1974 को हुआ था. पालमपुर में घुग्गर गांव में आज भी उनकी बहादुरी की कसमें खाई जाती हैं. गौरतलब है की देश की मिट्टी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले कैप्टन बत्रा ने कारगिल के पांच सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट्स को जीतने में मुख्य भूमिका निभाई थी. जोश और साहस ऐसा कि गोलियों से छलनी होने के बाद भी वह मरने से पहले अपने साथियों को बचाते रहे. खुद चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ‘वेद प्रकाश मलिक’ ने तब कहा था कि यदि कैप्टन विक्रम बत्रा जिंदा वापसी करते तो वह इंडियन आर्मी के हेड बन गए होते. वह महज 24 साल की उम्र में शहीद हुए, लेकिन अपने पीछे यादों, जज्बातों का ऐसा समंदर छोड़ गए, जिसमें हर हिंदुस्तानी का मन बार-बार डुबकी लगाने को करता है.
जब कैप्टन ने अपने साथी से कहा तुम पीछे हटो –
कैप्टन बत्रा की साहस के कई किस्से हैं. उन्हें साथी नवीन 7 जुलाई के उस मनहूस दिन को यादकर करते हुए कहते हैं, ‘बंकर में मैं उनके साथ था, गोलीबारी हो रही थी. एक बम मेरे पैर के पास आकर फट गया. मैं बुरी तरह घायल हो गया. कैप्टन ने मुझे वहां से तुरंत हटा लिया. मेरी जान बच गई. मुझसे कहा कि तुम हट जाओ, तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं
लेकिन इसके आधे घंटे बाद ही कैप्टन ने एक दूसरे अफसर को बचाते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी. हम आपको बता दे की फिल्म शेरशाह में भी यह सीन दर्शाया गया है.
‘जब कैप्टन ने माधुरी दीक्षित के प्यार के बदले गोलियां बरसा दी थी’ –
कैप्टन के साथी नवीन बताते हैं कि पाकिस्तान के घुसपैठिए भी उनसे खौफ खाते थे. युद्ध के दौरान एक बार एक पाकिस्तानी घुसपैठिया चिल्लाया, हमें माधुरी दीक्षित (Madhuri Dixit) दे दो, हम नरमदिल हो जाएंगे. इस बात पर कैप्टन बत्रा ने अपनी एके-47 से गोलियां बरसाते हुए मुस्कुराकर कहा, ये लो माधुरी दीक्षित के प्यार के साथ. वह घुसपैठिया सैनिक वहीं ढेर हो गया. विक्रम बत्रा ने कारगिल युद्ध में जाने से पहले कहा था, ‘या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा, या तिरंगे में लिपटा हुआ आऊंगा, पर मैं आऊंगा जरूर.’ आखिरकार उनकी यह बात सच साबित हुई. लेकिन जाते-जाते उन्होंने तिरंगे का मान- सम्मान और 17हजार फीट की ऊँचाई पे उसे फिर से फ़हरा दिया.
कैप्टन ने 1996 में पूरा किया था अपने बचपन का सपना-
विक्रम बत्रा ने 1996 में देहरादून की इंडियन मिलिट्री अकादमी जॉइन की थी, जो कि बचपन का सपना था. वह मानेकशॉ बटालियन का हिस्सा थे. 19 महीने की ट्रेनिंग के बाद 6 दिसंबर 1997 को वह जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स के 13वीं बटालियन (13 JAK RIF) में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात हुए. उन्हें आगे की ट्रेनिंग के लिए जबलपुर भेजा गया, जहां से 1998 के मार्च महीने में उनकी पोस्टिंग बारामुला, सोपोर में हुई. गिरधारी लाल बत्रा और कमलकांत बत्रा की तीसरी संतान कैप्टन विक्रम बत्रा बचपन से ही होनहार थे. वह स्कूल के दिनों में ही कराटे में ग्रीन बेल्ट पा चुके थे. कॉलेज में वह नैशनल कैडेट कोर यानी NCC की एयर विंग का हिस्सा थे. कहते हैं कि शहीद होने के ठीक पहले कैप्टन बत्रा के आखिरी शब्द थे- जय माता दी.
हम आपको बता दे की कैप्टन के एक बड़े भाई भी है जो बिल्कुल उन्हीं की तरह दिखते है . फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने ही उनके भाई का भी किरदार निभाया है.