गायक किशोर कुमार और उनके जीवन के कुछ अनसुने किस्से

Singer Kishore Kumar and some unheard stories: इंदौर (Indore) में 4 अगस्त, 1929 को जन्मे इस शानदार कलाकार ने इसी जमीन पर अपने जीवन का सफर पूरा किया.

किशोर कुमार (Kishore Kumar) जैसा बहुमुखी प्रतिभा वाला कलाकार अब हिंदी सिने जगत को मिलना बहुत ही मुश्किल है. उनकी कर्मभूमि मुंबई थी, लेकिन वे कभी भी अपनी जन्मभूमि को नहीं भूले और कहते भी थे- ‘दूध जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे.’. मध्य प्रदेश राज्य की कलाधानी खंडवा यदि स्वर कोकिला लता मंगेशकर की जन्मभूमि है तो किशोर कुमार की तपोभूमि.

4 अगस्त, 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा मे जन्मे आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार की स्कूली शिक्षा खंडवा में ही हुई. बचपन से शरारती बालक आभास को बुधवारा बाजार के गोटू हलवाई की दुकान पर अक्सर दूध-जलेबी खाते देखा जाता था.

बांबे बाजार स्थित गांगुली हाउस (बाद में गौरीकुंज), जहां बालक किशोर ने जन्म लिया था. किशोर व उनके अग्रज अनूप कुमार ने इंदौर क्रिश्चियन कालेज में वर्ष 1946 में ग्रेजुएशन में प्रवेश लिया, जहां किशोर कुमार का प्रवेश पत्र आज भी सुरक्षित रखा गया है. हास्टल में उनके कमरा नंबर चार में पुस्तकों के साथ तबला, ढोलक व हारमोनियम भी रहते. रोज शाम को महफिल सजती और वे के.एल. सहगल के गीतों को हूबहू उन्हीं के अंदाज में गाते.

टाकीज मे फिल्म देखने के बाद फिल्म के हीरो के संवाद उसी की शैली में सुनाते। दोस्तों के नाम उलटे करके बुलाना और गीत ‘दिल जलता है तो जलने दे’ को ‘लदि तालज है तो नेलज दे’ को उसी धुन में गाना उनकी कला का नमूना था.

हँसमुख अंदाज की कायल दुनिया

1948 में किशोर मुंबई चले गए, जहां फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमा चुके उनके बड़े भाई अशोक कुमार का उन्हें परोक्ष फायदा मिला. इसी वर्ष ‘जिद्दी’ में उनका गाया पहला गीत ‘मरने की दुआएं क्यों मांगू, जीने की तमन्ना कौन करे’ सफल रहा. कुछ वर्ष तक फिल्मों की शूटिंग में व्यस्तता के बीच अभिनेता किशोर कुमार को गानों की रिकार्डिंग का समय नहीं मिला. तब उनके लिए 20 से अधिक गीत अन्य गायकों ने गाए. चुलबुली हरकतों से साथियों को हंसाने वाले किशोर दा ‘खई के पान बनारस वाला’ गीत के लिए मुंह में पान रखकर गाने की इजाजत मिलने के बाद ही राजी हुए.

4 मई, 1986 को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिष्ठित लता मंगेशकर पुरस्कार ग्रहण करने किशोर कुमार इंदौर आए थे. बड़ा नेहरू स्टेडियम में आयोजित इस भव्य व गरिमामय पुरस्कार समारोह के अवसर पर पूरा इंदौर किशोरमय था. समय का पहिया घूमता रहा और लोगों को ‘चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना’ कहने वाले ने 13 अक्टूबर, 1987 को दुनिया से अलविदा कह दिया.

बंगाली परंपरा से श्रंगारित उनकी पार्थिव देह सड़क मार्ग से खंडवा लाई गई, जिसे गांधी भवन में लोगों के दर्शनार्थ रखा गया. मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पुष्पांजलि अर्पित की गई. अंतिम यात्रा गांधी भवन से होते हुए आवना नदी के किनारे खत्म हुई. पुत्र अमित कुमार ने मुखाग्नि दी. इसी स्थान पर इस कालजयी कलाकार की स्मृति में किशोर कुमार स्मारक बनाया गया है.

किशोर कुमार के स्वर व गायन में ऐसी विविधता रही कि 600 से अधिक फिल्मों में 5,000 से अधिक गीतों ने लोगों को रुलाया और गुदगुदाया.

 

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