Sin of phone tapping is recorded in the name of Congress: कांग्रेस (Congress) हमेशा से मोदी सरकार पर फोन टेप कराने का आरोप तो लगाती रही है लेकिन उसे खुद के हाथ दूध के धुले नहीं हैं. यूपीए (UPA) के दौरान में दौर में ऐसे एक दो नहीं बल्कि हजारों मामले आए जब सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर फोन टैप कराए गए. उस समय आलम यह था कि हर महीने 9000 से अधिक फोन कांग्रेस के दौर में टैप किए गए. गैरों की बात छोड़िए कांग्रेस ने तो अपने तक को नहीं बख्शा. 19 जनवरी 2006 को समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह (Amar Singh) ने इल्जाम लगाया कि मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने उनका फोन टेप कराया है.
इसके बाद दूसरे विपक्षी नेताओं जैसे सीताराम येचुरी, जयललिता, सीबी नायडू वगैरा ने भी यही आरोप लगाया. इस पर तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह का जवाब बेहद दिलचस्प था. उन्होंने कहा था कि ये फोन टैपिंग सरकार ने नहीं, बल्कि एक प्राइवेट एजेंसी ने कराई है. इस सिलसिले में भूपिंदर सिंह नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया गया.
गौरतलब है कि 17 अक्टूबर 2009 को तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल की सीपीएम सरकार पर अपना फोन, ई-मेल और यहां तक कि एसएमएस तक टैप करने का संगीन आरोप लगाया. इसके बाद 26 अप्रैल 2010 को संसद में फोन टैपिंग पर प्रलय की स्थिति आई. आखिरकार तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को आगे आना पड़ा और उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर पीएम मनमोहन सिंह अपना पक्ष रखेंगे. मनमोहन सिंह ने इस मामले में विपक्ष की जेपीसी की मांग को खारिज कर दी थी.
फिर 14 दिसंबर 2010 को एक बड़ा खुलासा हुआ. खुद उस समय के पीएम मनमोहन सिंह ने माना कि टॉप कार्पोरेट शख्सियतों के फोन टैप किए गए हैं. उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा, टैक्स चोरी और मनी लॉंड्रिंग के ग्राउंड पर इसकी तरफदारी की. इसके अगले ही दिन उन्होंने कैबिनेट सेक्रेटरी को फोन टैपिंग के मामले को देखने और इस तरह की लीक को रोकने की खातिर कानूनी ढांचा मजबूत करने का आदेश दिया.
यह सिलसिला यहीं नहीं रुका. अगली तारीख है 22 जून 2011 जब तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की एक चिट्ठी से भूचाल आ गया. उसी समय प्रणव मुखर्जी ने पीएम को एक चिट्ठी लिखकर अपने दफ्तर की बगिंग के बारे में एक सीक्रेट जांच कराने का अनुरोध किया. खास बात यह थी कि इसका ठीकरा उनके ही कैबिनेट के सहयोगी पर फूटा.