डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) का 2015 में साइन हुई ईरान न्यूक्लियर डील (Nuclear Deal) से बाहर निकलने का फैसला कितना सही था और कितना गलत यह तो खैर बड़ी लंबी बहस का विषय है लेकिन अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो वार्डन के आने के बाद ईरान के पास साल साल 2015 वाली न्यूक्लियर डील पर वापस आने के अवसर थे मगर ईरान को देखकर ऐसा नहीं लगता कि वह यह अवसर भुनाने के कोशिश में है. जिसके बाद भारत ने भी पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ की भरी सभा में ईरान को कड़ी नसीहत दे डाली है. क्योंकि ईरान का 2015 वाली न्यूक्लियर डील पर वापस आना कहीं ना कहीं भारत के लिए भी बहुत ही फायदेमंद साबित होने वाला है.
2015 न्यूक्लियर डील के तहत ईरान ने IAEA को अपने निगरानी की इजाजत दे दी थी जिसके तहत IAEA ने सभी निकले साइट्स में जाकर कैमरा थर्मल डिवाइस और कई तरह के उपकरण इंस्टॉल किए थे. जिसके द्वारा IAEA ईरान के इन क्षेत्रों पर नजर रख सकती थी और यह पता लगा सकती थी कि ईरान की न्यूक्लियर साइट्स पर क्या कुछ चल रहा है. और इरान कितना यूरेनियम निकाल रहा है.
गौरतलब है कि जो गार्डन के राष्ट्रपति बनने के 1 महीने बाद ईरान ने IAEA को यह लाइसेंस देने से मना कर दिया है जिससे कि अब वह ईरान की गतिविधियों पर नजर नहीं रख पाएगा. शायद उसने नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पर दबाव बनाने के लिए ऐसा किया था. लेकिन उसके बाद कई देशों के डिप्लोमेटिक एफर्ट के बाद ईरान ने आइए के साथ 3 महीने का एग्रीमेंट साइन किया है जोकि मई 24 को खत्म हो गया था. और उसको एक बार फिर जून 24 तक 1 महीने के लिए बढ़ा दिया गया था.
गौरतलब है कि ईरान में चुनाव के बाद उसने इस एग्रीमेंट को दोबारा शुरू नहीं किया है. इसके अलावा उसने IAEA के जितने भी उपकरण थे उसमें लॉग इन करने अनुमति नहीं दे रहा है. धमकी दी है कि अगर अमेरिका ने उस पर से सारे सैमसंग नहीं हटाए तो वह IAEA सारे उपकरण नष्ट कर देगा और साथ-साथ उसका सारा डाटा भी डिलीट कर देगा.
अभी हाल ही में हुए संयुक्त राष्ट्र रक्षा परिषद की बैठक में भारत की ओर से डीएस त्रिमूर्ति ने ईरान को नसीहत देते हुए कहा कि ईरान सभी वेरिफिकेशन पर IAEA के साथ मिलकर काम करें. उन्होंने आगे कहा कि ईरान न्यूक्लियर डील से संबंधित सभी मसलों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाए.