राजस्थान के अलवर जिले में एक बंदनगड़ी नामक गांव है. इसी गांव में साल 1975 में मनीराम शर्मा नाम के लड़के का जन्म हुआ था. पिता मजदूर तो वही मां की आंखों की रोशनी नहीं थी. इस वजह से मनीराम भी कानों से सुन नहीं सकते थे.
उस वक्त पढ़ाई का साधन भी बहुत ज्यादा नहीं हुआ करता था. जिसकी वजह से बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी सही तरीके से नहीं हो पाती थी. लेकिन मनीराम को पढ़ने का शौक था. गांव में पढ़ाई के साधन ना होने की वजह से गांव से 5 किलोमीटर दूर पैदल ही चलकर रोजाना स्कूल जाया करता था.
अपने दृढ़ निश्चय और अटल विश्वास की बदौलत मनीराम ने दसवीं की परीक्षा में पूरे राज्य शिक्षा बोर्ड में पांचवा और 12वीं की परीक्षा में सातवां स्थान हासिल किया. एक घटना को याद करते हुए मनीराम ने खुद बताया था कि जब दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद उनके पापा ने खुश होकर उन्हें एक विकास पदाधिकारी के पास लेकर गए और उन्हें कहा कि इसकी चपरासी में नौकरी लगा दो तो बीडीओ ने कहा कि,’ यह तो सुन भी नहीं सकता. इसे ना तो घंटी सुनाई देगी ना किसी की आवाज. यह कैसा चपरासी बन सकता है?’ पिता की आंखों में यह सुनकर आंसू आ गए थे.
आगे की पढ़ाई के लिए मनीराम ने अलवर में एडमिशन कर वहीं पर ट्यूशन पढ़ाने लगे. आगे की कक्षा में सफल होने के पश्चात उन्हें पीएचडी करने के लिए वजीफा मिल गया. पीएचडी करने के उपरांत उन्होंने आईएएस बनने की ठानी.
इसी क्रम में उन्हें एक डॉक्टर से पता चला कि उनके कान का ऑपरेशन होने के पश्चात व सुन सकते हैं. जिसके लिए उन्हें सात लाख खर्च करना पड़ेगा. मनीराम के क्षेत्र के सांसद ने विभिन्न संगठनों और आम लोगों के सहयोग से यह पैसे जुटाए. इसके बाद मनीराम का सफल ऑपरेशन किया गया. अंततः 2019 में वह फिर यूपीएससी की परीक्षा में बैठे और पास हो गया. और अपने आईएएस बनने का सपना साकार कर लिया.