महामारी के इस भयावह स्थिति में जब केंद्र और राज्य सरकार को कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए तो वहीं कुछ ऐसी राज्य सरकारें भी हैं जो केंद्र पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेल रही है. इस कड़ी में सबसे पहला नाम झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) का आता है. हाल ही में उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा कि,’ केंद्र सरकार ने उन्हें काम करने दे रही और ना ही खुद काम कर रही है.’
इंटरव्यू द संडे एक्सप्रेस (The Sunday Express) के द्वारा लिया जा रहा था. इस दौरान उन्होंने कहा कि,’ यह एक राष्ट्रीय महामारी है या कोई राज्य केंद्रित समस्या? केंद्र में स्थिति संभालने की पूरी जिम्मेदारी ना तो हमें भी और ना ही खुद ठीक से संभाली. हम दवाओं का आयात नहीं कर सकते, कि केंद्र से इजाजत नहीं मिली.’
ध्यान देने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री का यह आरोप फैक्ट से कोसों दूर है, क्योंकि भारत के संविधान के 7वे शेड्यूल के आर्टिकल 246 में राज्य और केंद्र के बीच की जिम्मेदारी सन 1950 में ही तय कर दी गई थी.
इस इंटरव्यू के दौरान यह साफ तौर पर देखा जा सकता था कि मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारियों से पूरी तरह से हाथ ऊपर उठा रहे हैं. उन्होंने इस दौरान आगे कहीं की,’ केंद्र ने प्रबंधन से जुड़े लगभग हर अहम मुद्दे का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया है, फिर चाहे वह अक्सीजन का आवंटन हो, मेडिकल इक्विपमेंट का आवंटन हो या वैक्सीन का,’
गौरतलब है कि हेमंत सोरेन ने झारखंड की अर्थव्यवस्था को गर्त में धकेल दिया है. राज्य के पास बिजली की आपूर्ति के लिए भी पैसे नहीं हैं ऐसी स्थिति में भारत सरकार ने दामोदर घाटी निगम की बिजली बिल के बकाया की 714 करोड़ की तीसरी किस्त झारखंड के खाते से नहीं काटी है. माना जा रहा है कि करो ना कॉल में भारत सरकार द्वारा किसी भी राज्य को दी गई यह सबसे बड़ी आर्थिक राहत.
हाल ही में हेमंत सोरेन ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि’, आज आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने फोन किया. उन्होंने सिर्फ अपने मन की. बेहतर होता यदि वह काम की बात करते और काम की बात सुनते.’ जिस पर कई सारे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने उन्हें खरी-खोटी सुनाई थी.