ममता बनर्जी ने एक बार फिर से चुनावी रैली के दौरान पाकिस्तान को क्लीन चिट देते हुए पुलवामा हमले के पीछे इशारों-इशारों में भारत को दोषी करार दिया हैं. ममता बनर्जी ने ब्यान देते हुए कहा है की, “पुलवामा हमले को लेकर बीजेपी देशप्रेम दिखाती है और फिर चुनाव देखते हुए पाकिस्तान से युद्ध छेड़ देती हैं.”
सभ्य भाषा का प्रयोग तो छोड़िये ममता बनर्जी ने शहीदों के बलिदान की भी लाज न रखते हुए ब्यान दिया की, “पुलवामा में यह अपने ही सैनिको को मार देते हैं और ऐसे लोग मुझे देशप्रेम सीखा रहे हैं.” इस तरह का भाषण दुर्भाग्य से पाकिस्तान के किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने नहीं बल्कि भारत के किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने दिया हैं.
पाकिस्तान पहले भी UN में भारतीय नेताओं के बयानों का जिक्र करते हुए भारतीय सरकार को ही भारत में हुए आतंकी हमलों का दोषी करार देने का प्रयास करता आया हैं. जबकि भारत पुरे सबूतों के साथ पाकिस्तान को UN में एक आतंकी देश घोषित करवाने के प्रयास करता आ रहा हैं.
ममता बनर्जी जैसे नेताओं को समझना होगा की वह भारत के नेता हैं न की पाकिस्तान के और भारत एक लोकतान्त्रिक देश हैं. सरकार बदलती हैं, पार्टी बदलती है, सत्ता एक हाथ से दूसरे हाथ आती जाती रहती हैं लेकिन कम से कम ऐसे ब्यान नहीं देने चाहिए जिससे देश की भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर आंच आने लगे.
आज भारत की कुछ पार्टियों को सत्ता से दूर होने का डर इस कदर सत्ता रहा है की वह रोहिंग्या जैसे आतंकियों को भी भारत की नागरिकता दिलाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहें हैं. कुछ पार्टियां तो ऐसी थी जिन्होंने कई दशकों तक एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लडे लेकिन अब वह गठबंधन कर चुनाव लड़ रही हैं.
चुनावी रैली में ममता बनर्जी का पुलवामा हमले पर विवादित बयान #MamataBanerjee #PulwamaAttack @aditi_tyagi pic.twitter.com/agCTrJu7jV
— Zee News (@ZeeNews) April 4, 2021
लेकिन सवाल फिर यही उठता है की सत्ता के लिए आप अपनी विचारधारा से समझौता करते हैं तो वो बात अलग हैं. लेकिन क्या सत्ता के लिए यह उचित है की आप पाकिस्तान की विचारधारा का समर्थन करने लगे? पुलवामा हमले पर विपक्षी पार्टियां और पाकिस्तान की सरकार के भाषणों में अंतर ही क्या हैं?