संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में श्रीलंका के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया था. इस प्रस्ताव पर चीन, पाकिस्तान और रूस ने श्रीलंका के पक्ष में मतदान देते हुए श्रीलंका का साथ तो दिया लेकिन वह उसे इस संकट से बचा नहीं सके. यह प्रस्ताव ब्रिटेन द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में लाया गया था.
इस प्रस्ताव के पक्ष में 22 देशों ने मतदान किया और 11 देशों के इसके खिलाफ मतदान किया. इसी के साथ भारत के साथ कुल 14 देशों ने मतदान के समय अनुपस्थित होने का फैसला किया. अब क्योंकि यह प्रस्ताव पास हो चूका है इसलिए अब श्रीलंका लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के साथ चले लम्बे समय तक के गृह युद्ध के दौरान हुई हिंसा इसके जांच दायरे में आ चुकी हैं.
अब संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) श्रीलंका में इस गृह युद्ध के दौरान सरकार द्वारा मानवाधिकार के खिलाफ उठाये गए कदमों की जांच शुरू करेगा और जिस रिपोर्ट फिर पूरी दुनिया के सामने रखी जाएगी. आसान भाषा में कहें तो श्रीलंका में श्रीलंका लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) श्रीलंका को तोड़ते हुए एक अलग देश की मांग करती आई हैं.
श्रीलंका लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) का कहना है की यह श्रीलंका की सरकार तमिल लोगों के साथ भेदभाव करती आयी हैं. भारत के लिए दिक्कत यह है की वह अगर श्रीलंका के पक्ष में वोट देता तो भारत की तमिल कम्युनिटी भारतीय सरकार से नाराज़ हो जाती.
वहीं अगर भारत इस बिल के पक्ष में वोट देता तो श्रीलंका की सरकार भारत से नाराज़ हो जाती और हो सकता है की भारत के कई प्रोजेक्ट्स का काम रोकते हुए वह चीन को दे देते. इससे चीन का श्रीलंका पर दबदबा बढ़ जाता और भारतीय नौसेना के लिए यह खतरे की घंटी से कम नहीं होता.
भारत का कहना है की वह श्रीलंका की दमनकारी नीतियों का विरोध तो करते हैं लेकिन वह श्रीलंका की अखंडता की भी कदर करते हैं. भारत का कहना है की ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका हल बातचीत से न हो और वैसे भी अगर भारत इस मामले में श्रीलंका लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) का साथ देता है तो भारत में खालिस्तान, कश्मीर, द्रविडनाडु जैसे मुद्दे भी सर उठाने लगेंगे.