हम और आप बचपन से ही सुनते आ रहें हैं की चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता है और उसपर कब्ज़ा करने की फिराख में रहता हैं. तिब्बत चीन से बड़ा देश था लेकिन अपनी सेना के दम पर उसने तिब्बत पर कब्ज़ा कर डाला. लेकिन शायद आपको यह पता न हो की चीन का बॉर्डर भारत से लगता ही नहीं था.
दुर्भाग्यपूर्ण भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आज़ादी के बाद चीन को अपना दोस्त बनाने के लिए पहले UN की स्थाई सीट का प्रस्ताव ठुकरा कर चीन को आगे कर दिया. उसके बाद उन्होंने वन चाइना पॉलिसी पर हस्ताक्षर करते हुए तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार कर डाला.
तिब्बत पर चीन का कब्ज़ा होते ही उसने वहां से यूरेनियम के भंडार खोज निकाले और अपनी विस्तारवाद निति के चलते उसने लद्दाख का बड़ा हिस्सा अपने कब्ज़े में कर डाला. दूसरी नज़र उसकी अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के कुछ इलाकों पर थी लेकिन वह युद्ध हार गया फिर भी कुछ हिस्सा उसके कब्ज़े में हैं.
अब भारत सरकार और पुरे देश के लिए यह हैरानी और ख़ुशी की बात है की अरुणाचल प्रदेश में चीन के बॉर्डर के पास ही यूरेनियम का भंडार मिला हैं. लेकिन हैरानी की बात यह है की क्या चीन को इसके बारे में पहले से पता था? क्या तिब्बत की तरह उसे अरुणाचल प्रदेश में मजूद यूरेनियम के भंडार का पहले से पता था क्या इसीलिए वो बार बार अरुणाचल प्रदेश में कब्ज़ा करने की फिराख में था?
यूरेनियम की बात करें तो इसका इस्तेमाल एटॉमिक हथियार बनाने, सबमरीन चलाने, न्यूक्लिअर रिएक्टर आदि में किया जाता हैं. अरुणाचल प्रदेश में यूरेनियम का मिलना भारत की तरक्की और विकास के लिए एक बड़ी भूमिका अदा करेगा. फिलहाल इस बात का खुलासा नहीं हुआ है की अरुणाचल प्रदेश में कितनी मात्रा में यूरेनियम मजूद हैं.
रिपोर्ट्स की माने तो यूरेनियम के मिलने के बाद से जल्द से जल्द सरकारी कागज़ी कार्यवाही को निपटाया जा रहा हैं. जिससे जल्द ही इसकी खुदाई का काम शुरू किया जा सके. भारत में यूरेनियम की खोज हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, आसाम, नागालैंड, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चमी बंगाल, झारखण्ड में भी यूरेनियम के अंश मिले हैं या उनकी खोज जारी हैं.