क्या सहानुभूति की राह पर निकली ममता बनर्जी?

पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव बस होने ही वाले हैं! ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और टीएमसी के बीच टक्कर देखने को मिल सकती है! हालांकि इस चुनाव में बाकी जितनी भी पार्टी है उनकी तरफ ध्यान बेहद ही कम आकर्षित हो रहा है लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित बीजेपी और टीएमसी ही कर रही है!

लेकिन इस बीच सहानुभूति की राजनीति भी रंग ला सकती है! जी हां यह एक ऐसा शब्द है जो राजनीति में बड़ा काम करता है! हम आपको कुछ ऐसे ही उदाहरण देकर समझाइए कि यह शब्द किस प्रकार से पूरी राजनीति बदल देता है! जिसका फायदा अब ममता बनर्जी भी उठा सकती है क्योंकि नंदीग्राम में उनके साथ जो भी कुछ हुआ है उसके बाद वह भी सहानुभूति नामक शब्द का इस्तेमाल करके सीढ़ियां चढ़ सकती है!

वहीं दूसरी ओर, सहानुभूति से पश्चिम बंगाल के अंदर जितनी भी विपक्षी पार्टियां हैं सब को डर सता रहा है कहीं इस बार भी ममता बनर्जी ही पश्चिम बंगाल में सत्ता बना जाए? तो चलिए हम बताते हैं आखिरकार यह शब्द क्या कर सकता है?

साल 1984 हर किसी के दिल और जहन में तो होगा ही जब देश की पूर्व प्रधानमंत्री और पहली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निधन हुआ! ऐसे में सहानुभूति शब्द की खोज हुई! जिसके चलते राजीव गांधी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था!

ऐसा ही कुछ देश की पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निधन के बाद हुआ जिसके चलते कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर से जबरदस्त जीत हासिल की थी और सत्ता में वापसी की थी!

और अब ऐसा ही कुछ पश्चिम बंगाल के अंदर भी देखा जा सकता है! क्योंकि बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ जो भी कुछ हुआ है उसके बाद सहानुभूति को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है तो ऐसे में विपक्षी दलों की ओर से यह भी कहा जा रहा है कि यह सब ममता बनर्जी ने वोटों की खातिर ही किया है! इसलिए कहीं ना कहीं अब विपक्षी दलों के बीच इस बात का डर भी बैठा हुआ है कि कहीं ममता बनर्जी इसके अंदर कामयाब ना हो जाए और अगर ऐसा हो गया तो नतीजे हैरान कर देने वाले सामने आएंगे!

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