डर कांपते हुए बोरिया बिस्तर गोल करते हुए नज़र आए चिल्ला बॉर्डर के किसान

जो किसान आंदोलन से जोड़े लोग मोदी और शाह को घुटनों पर लाने की बात करते थे, अब उनका उत्साह 26 जनवरी के बाद से कमजोर पड़ गया. जो हिन्दू 1984 के दंगों में सिखों को बेकसूर बताते थे और कांग्रेस के नेताओं को गालियां देते नहीं थकते थे वो भी सोशल मीडिया पर राजीव गाँधी, टाइटलर और इंदिरा गाँधी को सही ठहराते हुए नज़र आए.

26 जनवरी की घटना के बाद जो विपक्षी दल यह उम्मीद लगाए बैठे की पुलिस इन आंदोलनकारियों पर गोली चलाएगी, पुलिस इनको जख्मी करेगी और फिर इन मरे हुए आतंकियों को किसान बताकर उनपर राजनितिक रोटियां सेंकी जाएगी. वो सब प्लान फेल होता हुआ नज़र आया, इस पुरे आंदोलन में आंसू गैस के गोले छोड़े गए और लाठीचार्ज भी हुआ.

लेकिन न तो गोली चली और न ही पुलिस की वजह से कोई आतंकी मारा गया, जिसके बाद पुरे देश ने सिखों का असली चेहरा देखा. जिसके बाद लोगों में किसानों और सिखों के प्रति जो संवेदशीलता था वह समाप्त हो गई, हरियाणा के गांवों के बाहर सड़के जामकर बैठे किसान नेताओं को लोगों ने 24 घंटे का समय देते हुए सड़के खाली करने को कह दिया हैं.

भारतीय किसान यूनियन (भानू) के अध्यक्ष ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने किसान आंदोलन से अपने संघठन को अलग कर लिया और कहा की अब हमार संगठन इस आंदोलन का हिस्सा नहीं रहा. बस फिर क्या था, धरने पर बैठे किसानों ने डरते हुए जल्द से जल्द अपना बोरिया बिस्तर गोल करना शुरू कर दिया.

दरअसल हरियाणा पुलिस ने भी आंदोलनकारियों को सड़के खाली करने के लिए 24 घंटे का समय दिया है उधर हरियाणा के गांवों के लोगों ने भी पुलिस का साथ देते हुए कहा है की 24 घंटे में सड़के खाली न हुई तो हम पुलिस की कार्यवाही में उनका साथ देंगे. इसके इलावा अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीएम सिंह (VM Singh) ने भी इस आंदोलन से अपने संघठन को अलग करते हुए अपने संघठन से जुड़े किसानों को घर लौट जाने की सलाह दे डाली हैं.

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