जोयिता मंडल एक किन्नर हैं और समाज का किन्नरों के प्रति व्यवहार कैसा होता हैं वो किसी से छुपा हुआ नहीं हैं. हालाँकि जोयिता मंडल (Joyita Mondal) ने ऐसे लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारा है जो किन्नरों को समाज से भिन्न समझते हैं. जोयिता मंडल आज के समय पर पश्चिम बंगाल (West Bengal) के इस्लामपुर में लोक अदालत की जज और साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं.
लोक अदालत की जज और साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता (Social Worker) होना आम बात है, सुनकर कुछ आश्चर्य नहीं हुआ होगा. लेकिन एक किन्नर के नजरिए से देखें तो यह बहुत बड़ी बात हैं. लोग किन्नर का नाम सुनते ही ताली बजाकर पैसे मांगने वालों का ख्याल अपने मन में लेकर आते हैं, कोई किन्नर शब्द सुनकर यह ख्याल मन में नहीं लाता की वह एक जज भी हो सकता हैं.
किन्नर की तालियों की आवाज़ तो हर कोई सुनता हैं, लेकिन रोज़ाना खुद को समाज से अलग महसूस करने का उनका दर्द कोई नहीं सुनना चाहता. उदहारण के लिए आपकी एक दूकान हैं और एक किन्नर और एक लड़का या लड़की नौकरी लेने आते हैं तो आप किसे नौकरी देना पसंद करेंगे?
आप अगर किन्नर को नौकरी दे भी दें तो क्या ग्राहक दुबारा आपकी दूकान पर आकर सामान लेंगे? बस यही सबसे बड़ी वजह है की, किन्नर का जज बनना अपने आप में बहुत बड़ी बात हैं. जोयिता बताती है की वह बचपन से ही लड़कियों जैसे चलती और उनकी तरह कपडे पहनती थी. यह सब मेरे घर वालों को बर्दाश्त नहीं हुआ, पहले उन्होंने मुझे समझाया फिर पीटा और फिर घर से निकाल दिया.
जोयिता ने कहा की मुझे रहने के लिए होटल में कमरा नहीं दिया गया, कोई किराए पर घर देने को तैयार नहीं था, खाना लेने दूकान पर जाती तो मुझसे कभी दुआएं मंगवाई जाती तो कभी भगा दिया जाता. कॉलेज में भी लड़के लड़कियों ने इतना तंग किया की मैंने पढाई ही छोड़ दी.
जोयिता ने कहा की जब मोदी सरकार (Modi Government) बनने के बाद 2014 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का ट्रान्सजेंडरों पर फैसला आया तो मैंने अपने जिले में सबसे पहला पहचान पत्र (Identity Card) बनवाया, इससे पहले किसी किन्नर ने पहचान पत्र नहीं बनवाया था. जिसके बाद उन्होंने अपनी पढाई पूरी की और अब वह जज भी हैं, इसके साथ ही वह “Dinajpur Nuton Alo” और “Nai Roshani” नाम के NGO चलती हैं.