कश्मीर विस्थापन को अब 31 साल पुरे हो चुके हैं, इन 31 सालों तक अपने ही देश के अपने ही लोग एक राज्य शहर से निकाल कर दूसरे शहर में शरणार्थियों की तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहें हैं. इससे दुर्भाग्य पूर्ण घटना और क्या होगी इसी मौके पर एक कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandits) ने अपने 31 साल पुराने दुःख को याद करते हुए मीडिया को इंटरव्यू दिया.
उस कश्मीरी पंडित का कहना है की भारतवासियों के लिए यह कश्मीर विस्थापन दिन (Kashmir Displacement Day) होगा लेकिन हमारे लिए यह बुरे सपने से कम नहीं था, जिसमें दर्द, खून खराबा, दुष्कर्म हुआ था और करने वाले वह लोग थे जिन्हें हम सालों से या बचपन से ही जानते थे. यह बयान किसी और ने नहीं बल्कि कश्मीरी पंडित बंसीलाल भट्ट (Bansilal Bhatt) ने दिया हैं, उन्हें 1990 में अपना घर-बार छोड़कर जम्मू में शरण लेनी पड़ी थी.
कश्मीरी पंडित बंसीलाल भट्ट ने कहा की मैं जब भी आज से 31 साल पहले हुए इस हादसे को याद करता हूँ तो मेरी रुंह काँप उठती हैं. लोग अपने जान बचाने के लिए अपने हाथों से बनाये हुए घर और घर के सामान को छोड़कर भागने के लिए मजबूर थे. कई लोग सेब और केसर की खेती किया करते थे और सबको वहां से भागना पड़ा.
धारा 370 की वजह से हम भारत की सुप्रीम कोर्ट में अपने लिए न्याय भी नहीं मांग पाए, न ही जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में भारतीय संविधान (Indian Constitution) और उसके कानून लागू होते थे. नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की वजह से आज हमें उम्मीद है की जल्द ही हम कश्मीर में वापिस अपने घरों में रहने लगेंगे. बंसीलाल ने कहा की लेकिन यह भी तय है की हम पहले की तरह निडर होकर नहीं रह सकेंगे.
उन्होंने कहा क्योंकि कश्मीर में हमने भगाये जाने से ठीक एक रात पहले वहां की सभी मस्जिदों में एक साथ ऐलान हुआ था की, कश्मीरी पंडित अपनी खैरियत चाहते हैं तो यहाँ से भाग जाओ, हमें कश्मीर में कोई कश्मीरी पंडित नहीं चाहिए, लेकिन हाँ अपनी औरतों को हमारे लिए छोड़ जाना. उन्होंने कहा ऐसे नारों के कुछ घंटों के बाद ही लोगों ने वह मंज़र देखा जिसे हम कभी नहीं भुला पाए, जिन्हें हम बचपन से या सालों से जानते थे वह भी हमारे घरों पर अल्लाह का आदेश कहते हुए हमला कर रहे थे.