किसान आंदोलन (Kisan Protest) आने वाले समय रौद्र रूप ले सकता हैं, भारतीय सुरक्षा एजेंसी बहुत ज्यादा हाई अलर्ट पर हैं. इस आंदोलन के पीछे खालिस्तान (Khalistan) मुख्य रूप से सपोर्ट कर रहा हाई और खालिस्तान को चीन (China) के साथ-साथ पाकिस्तान (Pakistan) का सपोर्ट मिल रहा हैं. इसीलिए तो इस आंदोलन में भारतीय कम्पनीज (Indian Companies) को नुक्सान पहुँचाने की कोशिश की जा रही हैं.
दूसरी तरफ 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली (Tractor Rally) का आगाज़ होगा, यह रैली शांतिपूर्वक होने का दावा भले ही किया जा रहा हैं. लेकिन किसान आंदोलन के मंचों पर जिस प्रकार से बयान दिए जा रहें हैं उससे लगता हैं की इस ट्रेक्टर रैली को अमेरिका (America) में हुए दंगों के तर्ज़ पर अंजाम दिया जाएगा, यानी लाल किले और संसद भवन में घुसने की कोशिश की जाएगी.
लेकिन क्या यह आंदोलन रोका जा सकता था? तो जवाब हैं, हां… बिल के पास होते ही किसान संगठनों (Kisan Unions) ने इस बिल की तारीफ की जिसमें खुद राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) भी शामिल थे. लेकिन राजनीती गर्माती चलाई गयी, धीरे-धीरे अपनी साख और सत्ता बचाने के लिए राजनेता और किसान नेता दोनों ही अफवाहों में हां पर हां मिलाते चले गए.
पंजाब में छोटे सत्र पर आंदोलन शुरू हुए, सड़के ब्लॉक की जाने लगी, रेल ब्लॉक कर दी गयी. लेकिन अगर उस दौरान बीजेपी के नेता जब यह आंदोलन बहुत ही छोटा था, उस दौरान अपने-अपने क्षेत्र में इस बिल से जुडी भ्रांतियों को चाय पर चर्चा के तर्ज़ प्रोग्राम रखकर दूर करते तो आज हालात कुछ और होते.
बीजेपी जब से सत्ता में आई हैं, मोदी के नाम पर ऐसे नेता भी चुने गए हैं जो अपने घरों से बाहर ही निकलना चाहते. लेकिन कांग्रेस नेता इस मामले में खुद भी घर से बाहर आते हैं और लोगों को भी बाहर निकालते हैं. अगर स्थानीय बीजेपी नेता या फिर कार्यकर्त्ता अपने-अपने इलाकों ही इन बिलों के प्रति दुष्प्रचार होने की शुरुआत में ही इसकी भ्रांतियां दूर करने का काम शुरू करते तो आज हालात ऐसे न होते.
बीजेपी के कुछ नेता ऐसे भी हैं जो आज भी इन बिलों को लेकर कुछ बोलने से परहेज़ कर रहें हैं और कुछ नेता ऐसे हैं जो अब बोल तो रहें हैं लेकिन हालात इतने बिगड़ चुके हैं की अब न तो किसान उनकी सुनने को तैयार हैं और न ही किसान नेता. अगर BJP के लोकल नेता अपने-अपने सत्र पर अपनी जिम्मेदारियों से न भागते तो शायद आज हालात ऐसे न होते. बात रही विपक्ष और किसान नेताओं की तो उनसे उम्मीद करना ही बेकार था, क्योंकि अगर वो इस बिल को सही कहते तो उन्हें फिर वोट ही कौन देता?
हालाँकि ऐसा नहीं हैं की सारा कसूर बीजेपी के लोकल नेता और कार्यकर्ताओं का हैं, दरअसल बीजेपी के कृषि मंत्री (Union Minister of Agriculture) पंजाब में आंदोलन के शुरू होते ही किसान नेताओं को बैठक के लिए बुला रहे थे. लेकिन पंजाब के किसान नेताओं का कहना था की हम किसी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे, आप बस कानून रद्द कीजिए. हालाँकि फिर बात वही आ जाती हैं की जब किसान बिलों से जुडी अफवाहों का दौर शुरू हुआ था, उसी समय बीजेपी के कार्यकर्त्ता और लोकल नेता एक्टिव क्यों नहीं हुए.