तृणमूल कांग्रेस से विधायक सूखे पेड़ के पत्तों की तरह छड़ रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी जहां अपनी जीत का दावा ठोक रही हैं, वहीं ममता बनर्जी के लिए बीजेपी और ओवैसी दोनों ही मुसीबत बने हुए हैं. बीजेपी हिन्दू वोट बटोरने को तैयार है और ओवैसी मुस्लिम वोट बटोरने की तैयारी में बैठे हैं.
ऐसे में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए एक मुसीबत तो उनकी अपनी ही पार्टी के नेता खड़ी कर रहें हैं. दरअसल पिछले काफी समय से पार्टी के कुछ नेता ममता बनर्जी और उनकी नीतियों के चलते नाराज़ चल रहे थे. लेकिन ममता बनर्जी ने उनकी परेशानियों और सवालों के जवाब देने की बजाए उनसे दुरी बना ली.
नतीजा यह हुआ की चुनाव के पास आते ही इस्तीफों की झड़ी लग गयी. अब ममता बनर्जी चाह कर भी उन नेताओं को मना नहीं पा रही, लेकिन जो नेता अभी भी पार्टी में बने हुए हैं उनके लिए ममता बनर्जी ने एक बैठक बुलाई. इस बैठक में पार्टी के 4 बड़े नेता गायब रहे. ऐसे में सवाल यह उठता है की क्या तृणमूल कांग्रेस एक बार फिर से टूटने वाली हैं?
तृणमूल कांग्रेस के सेक्रेटरी जनरल पार्थ चटर्जी ने इन सवालों का जवाब देते हुए कहा की 3 नेताओं ने जायज़ और निजी कारणों का हवाला देते हुए इस बैठक में शामिल न होने का कारण बता दिया था. जबकि एक नेता जिनका नाम राजीब बनर्जी हैं, उसने पार्टी का संपर्क नहीं हो पा रहा और न ही वह कर रहें हैं.
आपको बता दें की राजीब बनर्जी डोमजूर के विधायक और राज्य के वन मंत्री भी हैं. तृणमूल कांग्रेस की बैठक से पहले उन्होंने कोलकाता में एक बैठक में भाई-भतीजावाद और चापलूसी को लेकर तृणमूल कांग्रेस पर निशाना साधा था. यह बयान उन्होंने साउथ कोलकाता में एक समाजिक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए दिया था.
राजीब बनर्जी ने कहा था की, “जो लोग AC में बैठ कर जनता को बेवकूफ बनाते हैं, उन्हें हर स्तर पर आगे बढ़ाया जा रहा है. जिन लोगों ने कुशलता से काम किया है, वो पीछे छूट जाते हैं.” इससे यह तो साफ़ है की ममता की बैठक में गैर मजूद रहे 4 में से 3 विधायक भले ही पार्टी के सम्पर्क में हो लेकिन राजीब बनर्जी आने वाले वक़्त में तृणमूल कांग्रेस से किनारा कर सकते हैं.