पंजाब में आयकर विभाग आढ़तियों के ठिकानों पर एक के बाद एक छापे मार रहा हैं. फसल उगाने वाला किसान आज भी आत्महत्या करने पर मजबूर हैं. वहीं विचौलिया यानी आढ़तिया कमीशन ले लेकर इतना अमीर बन जाता है की सब्जियों से लेकर अन्य फसलों तक का रेट तय करने लगता हैं.
भारत की सुरक्षा एजेंसियों का दावा था की खालिस्तान समर्थकों और पाकिस्तान की तरफ से किसान आंदोलन को भरपूर फंडिंग मिल रही हैं. सेवा भाव से जो लोग पैसा दे रहे हैं वो इस फंडिंग के मुकाबले में कुछ भी नहीं हैं. पाकिस्तान और खालिस्तानी समर्थकों का प्लान देश में धर्म के नाम पर हिंसा फैलाने का हैं.
इस हिंसा के बाद खालिस्तानी समर्थक फिर एक बार खालिस्तान बनाने की मांग को विदेशी धरती पर मजबूती से रख सकेंगे. इस तरह की चीज़ों को हैंडल करने का मात्र एक तरीका था की, जम्मू कश्मीर के जैसे फंडिंग पाने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जाये. इतना बड़ा आंदोलन बिना पैसों के नहीं चल सकता और सेवा भाव में आने वाले पैसों से इतनी सुख सुविधाएँ नहीं मिल सकती.
अब आयकर विभाव के छापों को सीधा सरकार की चाल समझना या कहना सही नहीं होगा. दरअसल ऐसे छापे हर साल मारे जाते हैं, जब इनकम टैक्स रिटर्न का समय आता हैं. 31 मार्च 2020 इनकम टैक्स फाइल करने की आखिरी तारिख हैं. अगर आढ़तियों ने अपनी इनकम सही से दर्शाते हुए टैक्स भरा हैं तो उन्हें इनकम टैक्स के छापों से डरने की जरूरत नहीं हैं और अगर आढ़तियों की आय, भरे गए इनकम टैक्स से ज्यादा है तो फिर इसे राजनितिक छापे करार देना गलत होगा.
फिर भी अब आढ़तियों ने एक गुट बनाकर सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया हैं और अनिश्चितकाल के लिए मंडियों को बंद रखने का भी फैसला किया हैं. मंडियों के बंद होने से किसानों को कितना नुक्सान होगा और उसकी भरपाई कैसे होगी इसके बारे में किसी भी किसान प्रेमी आढ़तिये और नेता को चिंता नहीं हैं. यहां तक की पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी आढ़तियों के यहां पड़ने वाले आयकर विभाग के छापों की निंदा की हैं और इसे किसान आंदोलन में शामिल होने की सज़ा करार दिया हैं.