मेक इन इंडिया के तहत विस्ट्रॉन जो की ऐपल के लिए iPhone मैन्यूफैक्चरिंग करती है वह चीन से भारत में शिफ्ट हो गयी. बड़ी कंपनी कभी भी डायरेक्ट वर्कर्स को नहीं हायर नहीं करती. इसके लिए वह प्लेसमेंट कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट कर लेती है उसके बाद बड़ी कंपनी उस प्लेसमेंट कंपनी को सैलरी देती है और प्लेसमेंट कंपनी वर्कर्स के कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से आगे लोगों को सैलरी देती हैं.
यह काम करने वालों को पहले से पता था, फिर भी जब उन्हें तीन महीने की तनख्वा नहीं मिली तो उन्होंने HR से बात की अब HR और कामगारों के बीच कम्युनिकेशन गैप के चलते मामला हाथ से निकल गया और विस्ट्रॉन में जमकर हंगामा हुआ. कंपनी में हुई इस तोड़फोड़ और iPhone के चोरी होने पर 420 करोड़ के अधिक का नुक्सान उठाना पड़ा.
कंपनी के अधिकारीयों ने यह साफ़ किया की हम लगातार इनके सैलरी तीनों प्लेसमेंट कंपनी को जारी कर रहे थे. उन्होंने आगे इन्हें सैलरी क्यों नहीं दी हमें नहीं पता. पुरे हंगामे के बाद जांच शुरू हुई तो पता चला इस हिंसा के पीछे कोई और नहीं बल्कि चीन को अपना दोस्त मानने वाली वामपंथी संगठन ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (SFI) के एक स्थानीय अध्यक्ष था.
गिरफ्तारी के बाद खुद को दुनिया का सबसे निष्पक्ष पत्रकार कहने वाले रविश कुमार का एक वीडियो सामने आया. इस वीडियो में रविश कुमार ने फैक्ट्स को छुपाते हुए 420 की लूट को जायज़ बता दिया. लेकिन सोचने वाली बात यह है की जो कंपनियां चीन की नीतियों से परेशान होकर भारत आना चाहती हैं, अब उनपर क्या असर पड़ेगा? क्या अब वह भारत आना चाहेंगी?
रविश कुमार ने कहा की, “ये कंपनी ताइवान की है जहाँ दस हजार से ज्यादा लोगों को सैलरी नहीं दी जा रही या फिर कम कर दी गई. शनिवार को इन कर्मचारियों ने प्लांट के भीतर हंगामा कर दिया. इस कम्पनी ने दावा किया है कि साढ़े चार सौ करोड़ का नुकसान हुआ है. आर्थिक दबाव लोगों की जिन्दगी में किस कदर घुस आया है कि वो अब प्लांट के भीतर हिंसा करने पर उतारू हैं. उनके बारे में बात नहीं की जा रही न वो चर्चा के केंद्र में आ रहे हैं, जिस दिन आ जाएँगे, लोग उसे दिन उन्हें भी कहेंगे कि ये माओवादी हैं और ये टुकड़े-टुकड़े गैंग के हैं.”
Source: opindia