जब से भारत में नए संसद भवन बनने का ऐलान हुआ हैं, तब से ही विदिशा के विजय मंदिर और नए संसद भवन के नक़्शे की तुलना शुरू हो गयी हैं. दरअसल पहली नज़र में नया संसद भवन देखने में बिलकुल विदिशा के विजय मंदिर की तरह लग रहा है. विदिशा का विजय मंदिर और नया संसद भवन दोनों की आकृति त्रिभुजाकार हैं.
विजय मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति ने करवाया था. उसके बाद जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने हमला किया तो उसने इस मंदिर पर तोप के गोले दगवा दिए. इस विजय मंदिर की विशालता और प्रसिद्धि इतनी ज्यादा थी की मुग़ल बादशाहों ने इसे कई बार लूटा, तोडा और इस दौरान कई हिन्दुवों की जान ली.
फिर भी श्रद्धालुवों की आस्था कम नहीं हुई और उन्होंने हर बार इसका दुबारा निर्माण करवाया. यह मंदिर इतिहासिक होने के चलते इस समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) के संरक्षण में हैं. आपको बता दें की यह विजय मंदिर हमारे देश की प्रचीन धरोहर भी है.
विजय मंदिर की साफ़ सफाई की बात करें तो इस समय उसकी जिम्मेदारी भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) के ही पास हैं. भारतीय पुरातत्व को विजय मंदिर के पास खनन के दौरान कीर्तिमुख नक्काशी वाली मूर्तियां मिली हैं. उन्हें देखकर साफ़ पता चलता यही की यह मंदिर अपने समय पर कितना भव्य और विशाल रहा होगा.
नई संसद भवन को लेकर विपक्ष पहले से ही मोदी सरकार की आलोचना कर रहा हैं. उसका कहना है की यह फ़िज़ूल खर्ची हैं, जबकि मोदी सरकार का कहना है की इस पुराने संसद भवन में हम न तो सीटों की संख्या बढ़ा सकते हैं और न ही इसे डिजिटल बना सकते हैं. मोदी सरकार संसद में होने वाले कामकाज को 2022 तक पूरी तरह से पेपरलेस करने के इरादे से इसे बनवा रही हैं.
साथ ही भविष्य में सांसदों की संख्या में अगर इजाफा हुआ तो उनके बैठने की सीटें पहले से ही तैयार हैं. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी इस बात का जिक्र कर चुके थे की भारत की आबादी के अनुसार कम से कम 500 सांसद होने चाहिए. लेकिन पुराणी सांसद भवन में यह सब कर पाना मुमकिन ही नहीं था. अब देखना यह होगा की विपक्ष इस नई सांसद भवन का विरोध कहीं यह कहते हुए शुरू न कर दें की यह हिंदुत्व से जुड़ा हैं जो सेकुलरिज्म के खिलाफ हैं.