किसान नेताओं की आपसी फुट अब साफ़ नज़र आने लगी हैं, कुछ संघठन में हालात ऐसे बन गए हैं की एक ही संघठन के दो बड़े नेता एक दूसरी की बात काट रहे हैं. जैसे कुछ का कहना है की बिल ठीक हैं, कुछ कह रहे है की बिल में संशोधन होना चाहिए और कुछ का कहना है की, जब तक बिल निरस्त नहीं होते हम प्रदर्शन जारी रखेंगे.
इसी क्रम में भारतीय किसान यूनियन (BKU) के ‘एकता उगराहा’ गुट ने सोमवार को हुए भूख-हरताल के कार्यकर्म से खुद को अलग कर लिया. इसके इलावा भारतीय किसान यूनियन (BKU) के तीन बड़े नेताओं ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया हैं. उधर कांग्रेस नेता और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के प्रमुख सरदार वीएम सिंह इस बात के लिए नाराज़ है की यह पूरा मुद्दा केवल पंजाब के किसानों के इर्द-गिर्द घूम रहा हैं.
भारतीय किसान यूनियन (BKU) के महासचिव सुखदेव सिंह ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा है की, “संगठन का कोई भी नेता उपवास में भाग नहीं लेगा.” वह भारतीय किसान यूनियन (BKU) ही था, जिसने CAA दंगों में गिरफ्तार हुए साजिश कर्ताओं की रिहाई की मांग के लिए बैनर उठाये थे.
चिल्ला सीमा पर विरोध-प्रदर्शन कर रहा किसान यूनियन भी अब दो भागों में बट गया हैं. राजनाथ सिंह से हुई मुलाक़ात के बाद भानु गुट का ग्रुप इस विरोध प्रदर्शन से अलग हो गया और उसने चिल्ला सीमा पर रास्ता खोल दिया. संघठन द्वारा लिए इस फैसले के चलते राष्ट्रीय महासचिव महेंद्र सिंह चौरोली, राष्ट्रीय प्रवक्ता सतीश चौधरी समेत एक महिला किसान नेता ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
जब किसान आंदोलन में खालिस्तानी नारे लगाए गए उसके बाद से ही विरोध उत्पन्न हो गया था. दूसरे राज्यों के किसान नेता समझ गए थे की किसान आंदोलन के नाम पर पंजाब के किसान नेता खालिस्तान की आवाज़ बुलंद करना चाहते हैं. यही कारण हैं की उत्तर प्रदेश के BKU (भानु) ने वीएम सिंह से अलग होने का फैसला कर लिया.