क्या आपने अमेरिका में एप्पल, अमेज़न, वाल-मार्ट जैसी 121 कंपनियों में से किसी का भी विरोध होते हुए देखा हैं? क्या आपने चीन में किसी कंपनी का विरोध होते हुए देखा हैं? जापान, कोरिया, रूस या फ्रांस की किसी कंपनी उसके आपने ही देश में आपने ही लोगों द्वारा?
दरअसल नहीं, आपने नहीं देखा होगा. यह कल्चर भारत में ही हैं, अगर कोई नई फैक्ट्री लगाने जाए और घास का एक पता कट जाए तो वामपंथी विरोध होगा हाय दुनिया से ऑक्सीजन ख़त्म हो गयी. यह सब 1960-70 के दशक से से शुरू हुआ जब फिल्मों में उद्योगपतियों को चोर और सुपर-वाइसर को हीरो बनाने का काम शुरू हुआ. लोगों को बताया गया की यह सब चोर लुटे होते है और आपका नेता ही आपका हीरो हैं.
दरअसल यह कंपनियां ही हैं जो राज्य सरकार से ज्यादा एक साल में नौकरियां पैदा करती हैं. यह कंपनियां ही है जो खुद भी टैक्स देती हैं और इनमे नौकरी करने वाले भी टैक्स देते हैं. इसी टैक्स की मदद से सरकार धनि होती हैं वह सरकारी कर्मचारियों को सैलरी और पेंशन बांटती हैं.
इसी टैक्स की बदौलत आपके लिए सड़कों से लेकर हॉस्पिटल और स्कूल खुलते हैं, सरकारी योजनाए और सब्सिडी बांटी जाती हैं. कभी सोचा है अगर यह कंपनियां न होती तो इन कंपनियों में काम करने वाले क्या करते? देश में 70-80 प्रतिशत से ज्यादा टैक्स का पैसा कहाँ से आता?
आपके घर में जितनी भी सुख सुविधा की चीजें मजूद हैं, फिर चाहे घर ही क्यों न हो उसका सीमेंट भी कोई न कोई कंपनी ही बनाती है. किसान का ट्रेक्टर से लेकर, फसलों में पड़ने वाले कीटनाशक भी कोई न कोई कंपनी ही बनाती हैं. यहां तक की जो पैसे यानी नोट छपते हैं न उसका कागज़ भी कोई न कोई कंपनी ही बनाती हैं.
विचार कीजिये कंपनियों के बिना आपका जीवन कैसा होता? वामपंथी केवल भारतीय कंपनियों को ही टारगेट करते हैं जबकि दुनिया की टॉप 500 कंपनियों में भारतीय कंपनियों की संख्या 10 से कम हैं और अमेरिका 121 और चीन की 124 हैं, उनका विरोध क्यों नहीं होता?
एक उदाहरण और जोड़ना चाहूंगा, जैसे आपको याद होगा पेटीम जब तक 100 प्रतिशत भारतीय था. इसको लेकर तरह-तरह की बातें की जाती थी, यहां तक की ध्रुव राठी ने भी इसके खिलाफ कुछ वीडियो बनाये थे. राहुल गाँधी तो इसे ‘पे टू मोदी’ तक कहते थे. जैसे ही इसमें 40 प्रतिशत हिस्सेदारी चीन की कंपनी अलीबाबा ने डाली, तब से ही वामपंथियों और विपक्षी पार्टियों ने पेटीएम के खिलाफ बोलना बंद कर दिया.